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Thursday, October 8, 2020

अपनापन और लगाव

एक बच्चे को आम का पेड़ बहुत पसंद था।*
*जब भी फुर्सत मिलती वो आम के पेड के पास पहुच जाता।*
*पेड के उपर चढ़ता,आम खाता,खेलता और थक जाने पर उसी की छाया मे सो जाता।*
*उस बच्चे और आम के पेड के बीच एक अनोखा रिश्ता बन गया।*
*बच्चा जैसे-जैसे बडा होता गया वैसे-वैसे उसने पेड के पास आना कम कर दिया।*
*कुछ समय बाद तो बिल्कुल ही बंद हो गया।*
*आम का पेड उस बालक को याद करके अकेला रोता।*
*एक दिन अचानक पेड ने उस बच्चे को अपनी तरफ आते देखा और पास आने पर कहा,*
*"तू कहां चला गया था? मै रोज तुम्हे याद किया करता था। चलो आज फिर से दोनो खेलते है।"*
*बच्चे ने आम के पेड से कहा,*
*"अब मेरी खेलने की उम्र नही है*
*मुझे पढना है,लेकिन मेरे पास फीस भरने के पैसे नही है।"*
*पेड ने कहा,*
*"तू मेरे आम लेकर बाजार मे बेच दे,*
*इससे जो पैसे मिले अपनी फीस भर देना।"*
*उस बच्चे ने आम के पेड से सारे आम तोड़ लिए और उन सब आमो को लेकर वहा से चला गया।*
*उसके बाद फिर कभी दिखाई नही दिया।*
*आम का पेड उसकी राह देखता रहता।*
*एक दिन वो फिर आया और कहने लगा,*
*"अब मुझे नौकरी मिल गई है,*
*मेरी शादी हो चुकी है,*
*मुझे मेरा अपना घर बनाना है,इसके लिए मेरे पास अब पैसे नही है।"*
*आम के पेड ने कहा,*
*"तू मेरी सभी डाली को काट कर ले जा,उससे अपना घर बना ले।"*
*उस जवान ने पेड की सभी डाली काट ली और ले के चला गया।*
*आम के पेड के पास अब कुछ नहीं था वो अब बिल्कुल बंजर हो गया था।*
*कोई उसे देखता भी नहीं था।*
*पेड ने भी अब वो बालक/जवान उसके पास फिर आयेगा यह उम्मीद छोड दी थी।*
*फिर एक दिन अचानक वहाँ एक बुढा आदमी आया। उसने आम के पेड से कहा,*
*"शायद आपने मुझे नही पहचाना,*
*मैं वही बालक हूं जो बार-बार आपके पास आता और आप हमेशा अपने टुकड़े काटकर भी मेरी मदद करते थे।"*
*आम के पेड ने दु:ख के साथ कहा,*
*"पर बेटा मेरे पास अब ऐसा कुछ भी नही जो मै तुम्हे दे सकु।"*
*वृद्ध ने आंखो मे आंसु लिए कहा,*
*"आज मै आपसे कुछ लेने नही आया हूं बल्कि आज तो मुझे आपके साथ जी भरके खेलना है,*
*आपकी गोद मे सर रखकर सो जाना है।"*
*इतना कहकर वो आम के पेड से लिपट गया और आम के पेड की सुखी हुई डाली फिर से अंकुरित हो उठी।*
*वो आम का पेड़ कोई और नही हमारे माता-पिता हैं दोस्तों ।*
*जब छोटे थे उनके साथ खेलना अच्छा लगता था।*
*जैसे-जैसे बडे होते चले गये उनसे दुर होते गये।*
*पास भी तब आये जब कोई जरूरत पडी,*
*कोई समस्या खडी हुई।*
*आज कई माँ बाप उस बंजर पेड की तरह अपने बच्चों की राह देख रहे है।*
*जाकर उनसे लिपटे,*
*उनके गले लग जाये*
*फिर देखना वृद्धावस्था में उनका जीवन फिर से अंकुरित हो उठेगा।*
**आप से प्रार्थना करता हूँ यदि ये कहानी अच्छी लगी हो तो कृपया ज्यादा से ज्यादा लोगों को भेजे ता *कि किसी की औलाद सही रास्ते पर आकर अपने माता पिता को गले लगा सके !*
आप सभी स्वस्थ रहें मस्त रहें मुस्कुराते रहें एवं जीवन के हर एक पल को एक नए उत्साह उमंग एवं आनंद के साथ सकारात्मक रूप से जीने का प्रयास करते रहे.

बन्धन

*एक बार अर्जुन ने कृष्ण से पूछा-*
*माधव.. ये 'सफल जीवन' क्या होता है ?*

*कृष्ण अर्जुन को पतंग  उड़ाने ले गए।*
*अर्जुन कृष्ण  को ध्यान से पतंग उड़ाते देख रहा था.*

*थोड़ी देर बाद अर्जुन बोला-*

*माधव.. ये धागे की वजह से पतंग अपनी आजादी से और ऊपर की ओर नहीं जा पा रही है, क्या हम इसे तोड़ दें ? ये और ऊपर चली जाएगी|*

*कृष्ण ने धागा तोड़ दिया ..*

*पतंग थोड़ा सा और ऊपर गई और उसके बाद लहरा कर नीचे आयी और दूर अनजान जगह पर जा कर गिर गई...*

*तब कृष्ण ने अर्जुन को जीवन का दर्शन समझाया...*
*पार्थ..  'जिंदगी में हम जिस ऊंचाई पर हैं..*
*हमें अक्सर लगता की कुछ चीजें, जिनसे हम बंधे हैं वे हमें और ऊपर जाने से रोक रही हैं; जैसे :*
            *-घर-*
        *-परिवार-*
      *-अनुशासन-*
    *-माता-पिता-*
       *-गुरू-और-*
          *-समाज-*

*और हम उनसे आजाद होना चाहते हैं...*

*वास्तव में यही वो धागे होते हैं - जो हमें उस ऊंचाई पर बना के रखते हैं..*

*इन धागों के बिना हम एक बार तो ऊपर जायेंगे परन्तु बाद में हमारा वो ही हश्र होगा, जो बिन धागे की पतंग का हुआ...'*

*अतः जीवन में यदि तुम ऊंचाइयों पर बने रहना चाहते हो तो, कभी भी इन धागों से रिश्ता मत तोड़ना.."*

*धागे और पतंग जैसे जुड़ाव* *के सफल संतुलन से मिली हुई ऊंचाई को ही 'सफल जीवन कहते हैं..!!*"

खाली अंतर्मन

*एक सन्यासी घूमते-फिरते एक दुकान पर आये | दुकान में अनेक छोटे-बड़े डिब्बे थे |*

*सन्यासी ने  एक डिब्बे की ओर इशारा करते हुए दुकानदार" से पूछा, "इसमें क्या है?"* 

*दुकानदार ने कहा, "इसमें नमक है।"*

*सन्यासी ने फिर पूछा, "इसके पास वाले में क्या है ?"*

*दुकानदार ने कहा, "इसमें हल्दी है।"*

*इसी प्रकार सन्यासी पूछ्ते गए और दुकानदार बतलाता रहा।*

*अंत मे पीछे रखे डिब्बे का नंबर आया, सन्यासी ने पूछा, "उस अंतिम डिब्बे में क्या है?"*

*दुकानदार बोला, "उसमें श्रीकृष्ण हैं।"*

*सन्यासी ने हैरान होते हुये पूछा, "श्रीकृष्ण !! भला यह "श्रीकृष्ण" किस वस्तु का नाम है भाई? मैंने तो इस नाम के किसी सामान के बारे में कभी नहीं सुना !"*

*दुकानदार सन्यासी के भोलेपन पर हंस कर बोला, "महात्मन! और डिब्बों मे तो भिन्न-भिन्न वस्तुएं हैं | पर यह डिब्बा खाली है| हम खाली को खाली नहीं कहकर 'श्रीकृष्ण' कहते हैं !"*
 
*संन्यासी की आंखें खुली की खुली रह गई ! जिस बात के लिये मैं दर-दर भटक रहा था, वो बात उसे आज, एक व्यापारी से समझ आ रही है।* वह सन्यासी उस छोटे से किराने के दुकानदार के चरणों में गिर पड़ा, *ओह, तो खाली में श्रीकृष्ण रहता है !*

*सत्य है! भरे हुए में श्रीकृष्ण को स्थान कहाँ?*

*काम, क्रोध, लोभ, मोह, लालच, अभिमान, ईर्ष्या, द्वेष और भली-बुरी, सुख-दुख, लाभ-हानि, जय-पराजय आदि बातों से जब दिल-दिमाग भरा रहेगा तो उसमें ईश्वर का वास कैसे होगा?*

परमात्मा की व्यवस्था

*यही जीवन है....*

कुछ लोग अपनी पढाई 22 साल की उम्र में पुर्ण कर लेते हैं मगर उनको कई सालों तक कोई अच्छी नौकरी नहीं मिलती, 

कुछ लोग 25 साल की उम्र में किसी कंपनी के सीईओ बन जाते हैं और 50 साल की उम्र में हमें पता चलता है वह नहीं रहे, 

जबकि कुछ लोग 50 साल की उम्र में सीईओ बनते हैं और 90 साल तक आनंदित रहते हैं,

बेहतरीन रोज़गार होने के बावजूद कुछ लोग अभी तक ग़ैर शादीशुदा है और कुछ लोग बग़ैर रोज़गार के भी शादी कर चुके हैं और रोज़गार वालों से ज़्यादा खुश हैं,

बराक ओबामा 55 साल की उम्र में रिटायर हो गये जबकि ट्रंप 70 साल की उम्र में शुरुआत करते है, 

कुछ लीजेंड परीक्षा में फेल हो जाने पर भी मुस्कुरा देते हैं और कुछ लोग एक नंबर कम आने पर भी रो देते हैं, 

किसी को बग़ैर कोशिश के भी बहुत कुछ मिल गया और कुछ सारी ज़िंदगी बस एड़ियां ही रगड़ते रहे,

इस दुनिया में हर शख़्स अपने टाइम ज़ोन की बुनियाद पर काम कर रहा है, 

ज़ाहिरी तौर पर हमें ऐसा लगता है कुछ लोग हमसे बहुत आगे निकल चुके हैं,
और शायद ऐसा भी लगता हो कुछ हमसे अभी तक पीछे हैं, 

लेकिन हर व्यक्ति अपनी अपनी जगह ठीक है अपने अपने वक़्त के मुताबिक़....!!

किसी से भी अपनी तुलना मत कीजिए..

अपने टाइम ज़ोन में रहें
इंतज़ार कीजिए और
इत्मीनान रखिए...

ना ही आपको देर हुई है और ना ही जल्दी, 

परमपिता परमेश्वर ने हम सबको अपने हिसाब से डिजा़इन किया है वह जानता है कौन कितना बोझ उठा सकता है किस को किस वक़्त क्या देना है, 

विश्वास रखिए भगवान की ओर से हमारे लिए जो फैसला किया गया है वह सर्वोत्तम ही है।

हिंदी का चमत्कार

*ये चमत्कार हिंदी में ही हो सकता है …!!*
🙏🙏🥰🙏🙏💘

*चार मिले चौसठ खिले, बीस रहे कर जोड़!*
*प्रेमी-प्रेमी दो मिले, खिल गए सात करोड़!!*

मुझसे एक बुजुर्गवार ने इस कहावत का अर्थ पूछा। 🙏
काफी सोच-विचार के बाद भी जब मैं बता नहीं पाया, तब मैंने कहा – बाबा आप ही बताइए, मेरी समझ में तो कुछ नहीं आ रहा।

तब एक रहस्यमयी😍 मुस्कान के साथ बाबा समझाने लगे – 

देखो भाग्यवान, यह बड़े रहस्य की बात है – *चार मिले –* मतलब जब भी कोई मिलता है, तो सबसे पहले आपस में दोनों की आंखें मिलती हैं।👁️👃👁️ इसलिए कहा, चार मिले।

फिर कहा, *चौसठ खिले –*🤩 यानि बत्तीस-बत्तीस दांत – दोनों के मिलाकर चौसठ हो गए – इस तरह “चार मिले, चौसठ खिले” – हुआ!

*“बीस रहे कर जोड़”*🙏🙏 – दोनों हाथों की दस उंगलियां – दोनों व्यक्तियों की 20 हुईं – बीसों मिलकर ही एक-दूसरे को प्रणाम की मुद्रा में हाथ बरबस उठ ही जाते हैं!

वैसे तो शरीर में रोम की गिनती करना असम्भव है,🤷🏻‍♂️ लेकिन मोटा-मोटा अर्थात् अनुमानतः साढ़े तीन करोड़ कहते हैं कहने वाले। तो कवि ने अंतिम रहस्य भी प्रकट कर दिया *– “प्रेमी प्रेमी दो मिले – खिल गए सात करोड़!”*

ऐसा अंतर्हृदय में बसा हुआ प्रिय व्यक्ति जब कोई मिलता है, तो रोम-रोम खिलना स्वाभाविक ही है भाई।

जैसे ही कोई ऐसा मिलता है, तो कवि ने अंतिम पंक्ति में पूरा रस निचोड़ दिया – *“खिल गए सात करोड़”* यानि हमारा रोम-रोम खिल जाता है!

भई वाह, आनंद आ गया। हमारी हिंदी कहावतों में कितना सार छुपा है। एक-एक शब्द चाशनी में डूबा हुआ। 

🙏🙏🙏🙏

Sunday, October 4, 2020

विश्वास believe विश्वास trust

*विश्वास (believe) तथा विश्वास (trust) में अंतर*

*एक बार, दो बहुमंजिली इमारतों के बीच, बंधी हुई एक तार पर लंबा सा बाँस पकड़े, एक नट चल रहा था । उसने अपने कन्धे पर अपना बेटा बैठा रखा था ।*

*सैंकड़ों, हज़ारों लोग दम साधे देख रहे थे। सधे कदमों से, तेज हवा से जूझते हुए, अपनी और अपने बेटे की ज़िंदगी दाँव पर लगाकर, उस कलाकार ने दूरी पूरी कर ली ।*

*भीड़ आह्लाद से उछल पड़ी, तालियाँ, सीटियाँ बजने लगी ।।*

*लोग उस कलाकार की फोटो खींच रहे थे, उसके साथ सेल्फी ले रहे थे। उससे हाथ मिला रहे थे । वो कलाकार माइक पर आया, भीड़ को बोला, "क्या आपको विश्वास है कि मैं यह दोबारा भी कर सकता हूँ ??"*

*भीड़ चिल्लाई, "हाँ हाँ, तुम कर सकते हो ।"*

*उसने पूछा, क्या आपको विश्वास है,भीड़ चिल्लाई हाँ पूरा विश्वास है, हम तो शर्त भी लगा सकते हैं कि तुम सफलता पूर्वक इसे दोहरा भी सकते हो।*

*कलाकार बोला, पूरा पूरा विश्वास है ना*

*भीड़ बोली, हाँ हाँ*

*कलाकार बोला, "ठीक है, कोई मुझे अपना बच्चा दे दे, मैं उसे अपने कंधे पर बैठा कर रस्सी पर चलूँगा ।"*

*खामोशी, शांति, चुप्पी फैल गयी।*

*कलाकार बोला, "डर गए...!" अभी तो आपको विश्वास था कि मैं कर सकता हूँ। असल मे आप का यह विश्वास (believe) है, मुझमेँ विश्वास (trust) नहीं है।दोनों विश्वासों में फर्क है साहेब!*

*यही कहना है, "ईश्वर हैं !" ये तो विश्वास है! परन्तु ईश्वर में सम्पूर्ण विश्वास नहीं है ।*

*You believe in God, but you don't trust him.*

*अगर ईश्वर में पूर्ण विश्वास है तो चिंता, क्रोध, तनाव क्यों ???   जरा सोचिए !!!*
🙏🙏जय माता दी🙏🙏

जिंदगी

*✍..खुश रहकर गुजारो,तो मस्त है जिदंगी,!*
*दुखी रहकर गुजारो,तो त्रस्त है जिंदगी!*
*तुलना में गुजारो,तो पस्त है जिंदगी!*
*इतंजार में गुजारो, तो सुस्त है जिंदगी!*
*सीखने में गुजारो,तो किताब है जिंदगी!*
*दिखावे में गुजारो,तो बर्बाद है जिदंगी!* 
*मिलती है एक बार,प्यार से बिताओ जिदंगी!*
*जन्म तो रोज होते हैं,यादगार बनाओ जिंदगी!!*
*🌹जय माता दी🌹*👏