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Monday, December 28, 2020

सुंदर व्यवहार

*एक सभा में गुरु जी ने प्रवचन के दौरान*
*एक 30 वर्षीय युवक को खडा कर पूछा कि*
*- आप मुम्बई मेँ जुहू चौपाटी पर चल रहे हैं और सामने से एक सुन्दर लडकी आ रही है तो आप क्या करोगे ?*
*युवक ने कहा - उस पर नजर जायेगी, उसे देखने लगेंगे।*
*गुरु जी ने पूछा - वह लडकी आगे बढ गयी तो क्या पीछे मुडकर भी देखोगे ?*
*लडके ने कहा - हाँ, अगर धर्मपत्नी साथ नहीं है तो। (सभा में सभी हँस पडे)*
*गुरु जी ने फिर पूछा - जरा यह बताओ वह सुन्दर चेहरा आपको कब तक याद रहेगा ?*
*युवक ने कहा 5 - 10 मिनट तक, जब तक कोई दूसरा सुन्दर चेहरा सामने न आ जाए।*

*गुरु जी ने उस युवक से कहा - अब जरा सोचिए,*
*आप जयपुर से मुम्बई जा रहे हैं और मैंने आपको एक पुस्तकों का पैकेट देते हुए कहा कि मुम्बई में अमुक महानुभाव के यहाँ यह पैकेट पहुँचा देना।*
*आप पैकेट देने मुम्बई में उनके घर गए।*
*उनका घर देखा तो आपको पता चला कि ये तो बडे अरबपति हैं।*
*घर के बाहर 10 गाडियाँ और 5 चौकीदार खडे हैं। आपने पैकेट की सूचना अन्दर भिजवाई तो वे महानुभाव खुद बाहर आए। आप से पैकेट लिया। आप जाने लगे तो आपको आग्रह करके घर में ले गए। पास में बैठकर गरम खाना खिलाया। जाते समय आप से पूछा - किसमें आए हो ? आपने कहा- लोकल ट्रेन में। उन्होंने ड्राइवर को बोलकर आपको गंतव्य तक पहुँचाने के लिए कहा और आप जैसे ही अपने स्थान पर पहुँचने वाले थे कि उस अरबपति महानुभाव का फोन आया - भैया, आप आराम से पहुँच गए।*
*अब आप बताइए कि आपको वे महानुभाव कब तक याद रहेंगे ?*
*युवक ने कहा - गुरु जी ! जिंदगी में मरते दम तक उस व्यक्ति को हम भूल नहीं सकते।*

*गुरु जी ने युवक के माध्यम से सभा को संबोधित करते हुए कहा*
*_"यह है जीवन की हकीकत।"_*

 *"सुन्दर चेहरा थोड़े समय ही याद रहता है,__पर हमारा सुन्दर व्यवहार जीवन भर याद रहता है।*
*अतः जीवन पर्यन्त अपने व्यवहार को सुन्दर बनाते रहिए फिर देखिए आपके जीवन का रंग *🎨 
🌺🌸🌼🥀🌺🌸🌼🥀🌺🌸🌼

Sunday, December 27, 2020

प्रायश्चित

दो भाई  परस्पर बडे़ ही स्नेह तथा सद्भावपूर्वक रहते थे।

 दोनो भाई कोई वस्तु लाते तो एक दूसरे के परिवार के लिए भी अवश्य ही लाते, छोटा भाई भी सदा उनको आदर तथा सम्मान की दृष्टि से देखता !
 
एक दिन किसी बात पर दोनों में कहा सुनी हो गई। बात बढ़ गई और छोटे भाई ने बडे़ भाई के प्रति अपशब्द कह दिए। बस फिर क्या था ?

दोनों के बीच दरार पड़ ही तो गई। उस दिन से ही दोनों अलग-अलग रहने लगे और कोई किसी से नहीं बोला। कई वर्ष बीत गये !

मार्ग में आमने सामने भी पड़ जाते तो कतराकर दृष्टि बचा जाते, छोटे भाई की कन्या का विवाह आया। उसने सोचा बडे़ अंत में बडे़ ही हैं, जाकर मना लाना चाहिए !

 वह बडे़ भाई के पास गया और पैरों में पड़कर पिछली बातों के लिए क्षमा माँगने लगा । बोला, *"अब चलिए और विवाह कार्य संभालिए !"*

 पर बड़ा भाई न पसीजा, चलने से साफ मना कर दिया। 
  
छोटे भाई को दुःख हुआ। अब वह इसी चिंता में रहने लगा कि कैसे भाई को मनाकर लगा जाए इधर विवाह के भी बहुत ही थोडे दिन रह गये थे। संबंधी आने लगे थे !

एक सम्बन्धी ने बताया, *"तुम्हारा बडा भाई एक संत के पास नित्य जाता है और उनका कहना भी मानता है!"*

छोटा भाई उन संत के पास पहुँचा और पिछली सारी बात बताते हुए अपनी त्रुटि के लिए क्षमा याचना की तथा गहरा पश्चात्ताप व्यक्त किया और उनसे प्रार्थना की, *''आप किसी भी तरह मेरे भाई को मेरे यहाँ आने के लिए तैयार कर दे !''*

दूसरे दिन जब बडा़ भाई सत्संग में गया तो संत ने उससे पूछा, *"क्यों तुम्हारे छोटे भाई के यहाँ कन्या का विवाह है ? तुम क्या-क्या काम संभाल रहे हो ?"*

 *"मैं तो विवाह में सम्मिलित ही नही हो रहा। कुछ वर्ष पूर्व मेरे छोटे भाई ने मुझे ऐसे कड़वे वचन कहे थे, जो आज भी मेरे हृदय में काँटे की तरह खटक रहे हैं !''* बड़े भाई ने कहा।

संत जी ने कहा, *"सत्संग के बाद मुझसे मिल कर जाना!"*

सत्संग समाप्त होने पर वह संत के पास पहुँचा, उन्होंने पूछा, *"मैंने गत रविवार को जो प्रवचन दिया था उसमें क्या कहा था?"*

अब भाई मौन!

काफी देर सोचने के बाद हाथ जोड़ कर बोला, *" माफी चाहता हूँ,कुछ याद नहीं पडता़ कौन सा विषय था ?"*

संत बोले, *"देखा! मेरी बताई हुई अच्छी बातें तो तुम्हें आठ दिन भी याद न रहीं और छोटे भाई के कडवे बोल जो एक वर्ष पहले कहे गये थे, वे तुम्हें अभी तक हृदय में चुभ रहे है। जब तुम अच्छी बातों को याद ही नहीं रख सकते, तब उन्हें जीवन में कैसे उतारोगे"*

 *"और जब जीवन नहीं  सुधारा तब सत्सग में आने का लाभ ही क्या रहा ? अतः कल से यहाँ मत आया करो !''*

*अब बडे़ भाई की आँखें खुली।उसने आत्म-चिंतन किया और स्वीकार किया   _"मैं वास्तव में ही गलत मार्ग पर हूँ !"_*

 _*हमारे साथ भी ऐसा ही होता है अक्सर दूसरों की कही किसी बात का हम बुरा मान जाते हैं और बेवजह उससे दूरी बना लेते हैं।*_ 

_*हमें चाहिए कि हम आपसी बातचीत से मन में उपजी कटुता को भुलाकर सौहार्द पूर्ण वातावरण बनाएं।*_ 

_*न स्वयम किसी से रूठें न किसी को रूठने का मौका दें।*_         

*तो शुभ काम में देरी क्यों*

*कृपया उठाएं फोन और हो जाएं शुरू*

*रूठों को मनाने में*

*दूसरों की गलतियों को भुलाते हुए स्वयम ही वार्तालाप प्रारम्भ कर अपना और उनका दिन खुशियों से भरने में*

*बडप्पन भी इसी में ही है!*

Saturday, December 12, 2020

शान्ति

एक आदमी ने अपने घर की कॅालबेल सुधरवाने के लिए एक मेकेनिक को बुलाया हुआ था। बाहर जो घंटी लगी है वो खराब थी । दो दिन बीत गए, तीन दिन बीत गए, वह मेकेनिक नहीं आया। तो उसने फिर उसे फोन किया कि तुम आए नहीं, मैं तीन दिन से रास्ता देख रहा हूं।

उसने कहा, मैं आया था, मैंने कॅालबेल बजाई थी, लेकिन किसी ने दरवाजा नहीं खोला। अब उसको कॅालबेल सुधरवाने के लिए बुलाया हुआ था। उस सज्जन ने कॅालबेल बजाई, किसी ने नहीं सुनी इसलिए वापस लौट गए।

अधिक लोगों की प्रार्थनाएं इसी तरह की कॅालबेल पर हाथ रखना है, जो बिगड़ी पड़ी है, जो कहीं नहीं बजेगी। वे जिंदगी भर प्रार्थना करते रहें, कहीं नहीं सुनी जाएगी। फिर नाराज परमात्मा पर होंगे आप।

नाराज अपने पर हों, परमात्मा का इसमें कोई कसूर नहीं है। परमात्मा के साथ कम्युनिकेशन का, संवाद का जो पहला सूत्र है, वह शांति है। शांति के ही द्वार से हम उससे संबंधित होते हैं। या इससे उलटा कहें तो ज्यादा अच्छा होगा। अशांति के कारण हम उससे डिसकनेक्ट हो जाते हैं, 

इसलिए परमात्मा से शांति मत मांगिये, शांति आप खुद लेकर जाना उसके द्वार पर। आनंद उससे मिल सकता है, शांति आपको बनानी पड़ेगी।

जीवन को पकड़ें मत, बहने दें। फिर आप अशांत न होंगे। जिस चीज को पकड़ लेते हैं, वही अशांति ले आती है। चाहे आप प्रेम को पकड़ लें। कल एक आदमी आपका  मित्र था, आज मित्र नहीं है, तो आप अशांत हो रहे हैं। क्यों अशांत हो रहे हैं? इतना ही क्या कम है कि वह कल मित्र था। आज भी मित्र हो, यह आपकी पकड़ है। आप कह रहे हैं, कल मित्र थे तो आज भी मित्र होना ही चाहिए। बस अब आप अशांत होंगे। इतना ही क्या कम है कि वह कल मित्र था। कल के लिए धन्यवाद दे दें और बात समाप्त हो गई। तो फिर अशांत न होंगे।

Friday, December 4, 2020

तटस्थ या साक्षी

निष्क्रिय होना तटस्थ होना ,,,

एक पंडित था। बहुत शास्त्र उसने पढ़े थे। बहुत शास्त्रों का ज्ञाता था। उसने एक तोता भी पाल रखा था। पंडित शास्त्र पढ़ता था, तोता भी दिन-रात सुनते-सुनते काफी शास्त्र सीख गया था। क्योंकि शास्त्र सीखने में तोते जैसी बुद्धि आदमी में हो, तभी आदमी भी सीख पाता है। सो तोता खुद ही था। पंडित के घर और पंडित भी इकट्ठे होते थे। 

शास्त्रों की चर्चा चलती थी। तोता भी काफी निष्णात हो गया। तोतों में भी खबर हो गई थी कि वह तोता पंडित हो गया है।

फिर गांव में एक बहुत बड़े साधु का, एक महात्मा का आना हुआ। नदी के बाहर वह साधु आकर ठहरा था। पंडित के घर में भी चर्चा आई। वे सब मित्र, उनके सत्संग करने वाले सारे लोग, उस साधु के पास जाने को तैयार हुए कुछ जिज्ञासा करने। जब वे घर से निकलने लगे तो उस तोते ने कहा, मेरी भी एक प्रार्थना है, 

महात्मा से पूछना, मेरी आत्मा भी मुक्त होना चाहती है, मैं क्या करूं? मैं कैसा हो जाऊं कि मेरी आत्मा मुक्त हो जाए?

सो उन पंडितों ने कहा, उन मित्रों ने कहा कि ठीक है, हम जरूर तुम्हारी जिज्ञासा भी पूछ लेंगे। वे नदी पर पहुंचे, तब वह महात्मा नग्न नदी पर स्नान करता था। वह स्नान करता जा रहा था। घाट पर ही वे खड़े हो गए और उन्होंने कहा, हमारे पास एक तोता है, वह बड़ा पंडित हो गया है।

उस महात्मा ने कहा, इसमें कोई भी आश्चर्य नहीं है। सब तोते पंडित हो सकते हैं, क्योंकि सभी पंडित तोते होते हैं। हो गया होगा। फिर क्या?

उन मित्रों ने कहा, उसने एक जिज्ञासा की है कि मैं कैसा हो जाऊं, मैं क्या करूं कि मेरी आत्मा मुक्त हो सके?

यह पूछना ही था कि वह महात्मा जो नहा रहा था, उसकी आंख बंद हो गईं, जैसे वह बेहोश हो गया हो, उसके हाथ-पैर शिथिल हो गए। धार थी तेज, नदी उसे बहा ले गई। वे तो खड़े रह गए चकित। उत्तर तो दे ही नहीं पाया वह, और यह क्या हुआ! उसे चक्कर आ गया, गश्त आ गया, मूर्च्छा हो गई, क्या हो गया? नदी की तेज धार थी--कहां नदी उसे ले गई, कुछ पता नहीं।

वे बड़े दुखी घर वापस लौटे। कई दफा मन में भी हुआ इस तोते ने भी खूब प्रश्न पुछवाया। कोई अपशगुन तो नहीं हो गया। घर से चलते वक्त मुहूर्त ठीक था या नहीं? यह प्रश्न कैसा था, प्रश्न कुछ गड़बड़ तो नहीं था? हो क्या गया महात्मा को?

वे सब दुखी घर लौटे। तोते ने उनसे आते ही पूछा, मेरी बात पूछी थी? उन्होंने कहा, पूछा था। और बड़ा अजीब हुआ। उत्तर देने के पहले ही महात्मा का तो देहांत हो गया। वे तो एकदम बेहोश हुए, मृत हो गए, नदी उन्हें बहा ले गई। उत्तर नहीं दे पाए वह।

इतना कहना था कि देखा कि तोते की आंख बंद हो गईं, वह फड़फड़ाया और पिंजड़े में गिरकर मर गया। तब तो निश्चित हो गया, इस प्रश्न में ही कोई खराबी है। दो हत्याएं हो गईं व्यर्थ ही। तोता मर गया था, द्वार खोलना पड़ा तोते के पिंजड़े का।

द्वार खुलते ही वे और हैरान हो गए। तोता उड़ा और जाकर सामने के वृक्ष पर बैठ गया। और तोता वहां बैठकर हंसा और उसने कहा कि उत्तर तो उन्होंने दिया, लेकिन तुम समझ नहीं सके। उन्होंने कहा, ऐसे हो जाओ, मृतवत, जैसे हो ही नहीं। मैं समझ गया उनकी बात। और मैं मुक्त भी हो गया--तुम्हारे पिंजड़े के बाहर हो गया। अब तुम भी ऐसा ही करो, तो तुम्हारी आत्मा भी मुक्त हो सकती है।

'' तो अंत में मैं यही कहना चाहूंगा: ऐसे जीएं जैसे हैं ही नहीं। हवाओं की तरह, पत्तों की तरह, पानी की तरह, बादलों की तरह। जैसे हमारा कोई होना नहीं है। जैसे मैं नहीं हूं। जितनी गहराई में ऐसा जीवन प्रगट होगा, उतनी ही गहराई में मुक्ति निकट आ जाती है।"

Sunday, November 22, 2020

जीवन के दुख

जीवन में आने वाले दुख को कैसे दूर करें, पढ़े ये कथा

महाभारत युद्ध अधर्म पर धर्म की लड़ाई थी। जो कौरव और पांडवों के बीच हुई थी। जिसमें कौरवों ने हर कदम पर छल और अधर्म का साथ लिया। वहीं, पांडवों ने धर्म के साथ आगे बढ़ते हुए इस युद्ध पर विजय प्राप्त किया।

महाभारत के शांति पर्व में युधिष्ठिर ने भीष्म पितामह से पूछा कि पितामह जीवन में कभी-कभी हमारे सामने ऐसी परिस्थितियां बन जाती हैं, जिसमें हम समझ नहीं पाते हैं कि क्या करें और क्या न करें। कभी-कभी गुरु द्वारा बताए गए ज्ञान के अनुसार कोई काम करना जरूरी होता है, लेकिन उसमें हिंसा होने की वजह से हमें अनुचित लगता है। पितामह, ऐसे अवसर पर हमें वह काम तुरंत करना चाहिए या उसके संबंध में विचार करना चाहिए।

भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को गौतम ऋषि और उनके पुत्र चिरकारी की कथा सुनाई। भीष्म ने कहा कि चिरकारी हर काम हर काम सोच-समझकर देरी से करता था। एक दिन गौतम ऋषि अपनी पत्नी से क्रोधित हो गए और चिरकारी से कहा अपनी का वध कर दे। ऐसा बोलकर गौतम ऋषि वहां चले गए।

चिरकारी सोचने लगा कि माता का वध करूं या नहीं। माता-पिता के बारे में धर्म के अनुसार विचार करने लगा। बहुत समय तक उसने पिता की आज्ञा का पालन नहीं किया। जब गौतम ऋषि लौटकर आए तो उन्हें दुख हो रहा था कि उन्होंने पत्नी को मारने का आदेश देकर गलती कर दी। जब घर पहुंचे तो उन्होंने देखा कि चिरकारी की माता जीवित थी। ये देखकर गौतम ऋषि प्रसन्न हो गए।

भीष्म ने युधिष्ठिर से कहा कि-

रागे दर्पे च माने च द्रोहे पापे च कर्मणि।

अप्रिये चैव कर्तव्ये चिरकारी प्रशस्यते।।

ये महाभारत के शांति पर्व के 266वें अध्याय का 70वां श्लोक है। इसमें भीष्म पितामह युधिष्ठिर से कहते हैं कि हमें राग यानी मोह बढ़ाने में, अत्यधिक जोश दिखाने में देरी करना चाहिए। घमंड दिखाने में, लड़ाई करने में, कोई पाप करने में, किसी का बुरा करने में जितनी ज्यादा हो सके, उतनी देरी करनी चाहिए। इस नीति का ध्यान रखने पर हम कई समस्याओं से बच सकते हैं।

Thursday, November 19, 2020

तीन प्रहर , जीवन की शाम

*तीन पहर......*

 तीन पहर तो बीत गए, बस एक पहर ही बाकी है, जीवन हाथो से फिसल गया, बस खाली मुठ्ठी बाकी है। सब कुछ पाया इस जीवन में, फिर भी इच्छाएँ बाकी है, दुनिया में हमने क्या पाया, यह लेखा जोखा बहुत हुआ, इस जग ने हमसे क्या पाया, बस यह गणनाएं बाकी है। तीन पहर तो बीत गए, बस एक पहर ही बाकी हैं। इस भाग दौड़ की दुनिया में, हमको एक पल का होश नही, वैसे तो जीवन सुखमय है, पर फिर भी क्यों संतोष नही, क्या यूं ही जीवन बीतेगा? क्या यूं ही सांसे बन्द होगी? औरो की पीड़ा देख समझ, कब अपनी आंखें नम होगी? निज मन के भीतर छुपे हुए, इस प्रश्न का उत्तर बाकी है। तीन पहर तो बीत गए, बस एक पहर ही बाकी है। मेरी खुशियाँ, मेरे सपने, मेरे बच्चे , मेरे अपने, यह करते करते शाम हुई, इससे पहले तम छा जाए, इससे पहले कि शाम ढले, एक परायी बस्ती में, एक दीप जलाना बाकी है। तीन पहर तो बीत गए, बस एक पहर ही बाकी है। जीवन हाथों से फिसल गया, बस खाली मुठ्ठी बाकी हैं।

Thursday, October 8, 2020

अपनापन और लगाव

एक बच्चे को आम का पेड़ बहुत पसंद था।*
*जब भी फुर्सत मिलती वो आम के पेड के पास पहुच जाता।*
*पेड के उपर चढ़ता,आम खाता,खेलता और थक जाने पर उसी की छाया मे सो जाता।*
*उस बच्चे और आम के पेड के बीच एक अनोखा रिश्ता बन गया।*
*बच्चा जैसे-जैसे बडा होता गया वैसे-वैसे उसने पेड के पास आना कम कर दिया।*
*कुछ समय बाद तो बिल्कुल ही बंद हो गया।*
*आम का पेड उस बालक को याद करके अकेला रोता।*
*एक दिन अचानक पेड ने उस बच्चे को अपनी तरफ आते देखा और पास आने पर कहा,*
*"तू कहां चला गया था? मै रोज तुम्हे याद किया करता था। चलो आज फिर से दोनो खेलते है।"*
*बच्चे ने आम के पेड से कहा,*
*"अब मेरी खेलने की उम्र नही है*
*मुझे पढना है,लेकिन मेरे पास फीस भरने के पैसे नही है।"*
*पेड ने कहा,*
*"तू मेरे आम लेकर बाजार मे बेच दे,*
*इससे जो पैसे मिले अपनी फीस भर देना।"*
*उस बच्चे ने आम के पेड से सारे आम तोड़ लिए और उन सब आमो को लेकर वहा से चला गया।*
*उसके बाद फिर कभी दिखाई नही दिया।*
*आम का पेड उसकी राह देखता रहता।*
*एक दिन वो फिर आया और कहने लगा,*
*"अब मुझे नौकरी मिल गई है,*
*मेरी शादी हो चुकी है,*
*मुझे मेरा अपना घर बनाना है,इसके लिए मेरे पास अब पैसे नही है।"*
*आम के पेड ने कहा,*
*"तू मेरी सभी डाली को काट कर ले जा,उससे अपना घर बना ले।"*
*उस जवान ने पेड की सभी डाली काट ली और ले के चला गया।*
*आम के पेड के पास अब कुछ नहीं था वो अब बिल्कुल बंजर हो गया था।*
*कोई उसे देखता भी नहीं था।*
*पेड ने भी अब वो बालक/जवान उसके पास फिर आयेगा यह उम्मीद छोड दी थी।*
*फिर एक दिन अचानक वहाँ एक बुढा आदमी आया। उसने आम के पेड से कहा,*
*"शायद आपने मुझे नही पहचाना,*
*मैं वही बालक हूं जो बार-बार आपके पास आता और आप हमेशा अपने टुकड़े काटकर भी मेरी मदद करते थे।"*
*आम के पेड ने दु:ख के साथ कहा,*
*"पर बेटा मेरे पास अब ऐसा कुछ भी नही जो मै तुम्हे दे सकु।"*
*वृद्ध ने आंखो मे आंसु लिए कहा,*
*"आज मै आपसे कुछ लेने नही आया हूं बल्कि आज तो मुझे आपके साथ जी भरके खेलना है,*
*आपकी गोद मे सर रखकर सो जाना है।"*
*इतना कहकर वो आम के पेड से लिपट गया और आम के पेड की सुखी हुई डाली फिर से अंकुरित हो उठी।*
*वो आम का पेड़ कोई और नही हमारे माता-पिता हैं दोस्तों ।*
*जब छोटे थे उनके साथ खेलना अच्छा लगता था।*
*जैसे-जैसे बडे होते चले गये उनसे दुर होते गये।*
*पास भी तब आये जब कोई जरूरत पडी,*
*कोई समस्या खडी हुई।*
*आज कई माँ बाप उस बंजर पेड की तरह अपने बच्चों की राह देख रहे है।*
*जाकर उनसे लिपटे,*
*उनके गले लग जाये*
*फिर देखना वृद्धावस्था में उनका जीवन फिर से अंकुरित हो उठेगा।*
**आप से प्रार्थना करता हूँ यदि ये कहानी अच्छी लगी हो तो कृपया ज्यादा से ज्यादा लोगों को भेजे ता *कि किसी की औलाद सही रास्ते पर आकर अपने माता पिता को गले लगा सके !*
आप सभी स्वस्थ रहें मस्त रहें मुस्कुराते रहें एवं जीवन के हर एक पल को एक नए उत्साह उमंग एवं आनंद के साथ सकारात्मक रूप से जीने का प्रयास करते रहे.

बन्धन

*एक बार अर्जुन ने कृष्ण से पूछा-*
*माधव.. ये 'सफल जीवन' क्या होता है ?*

*कृष्ण अर्जुन को पतंग  उड़ाने ले गए।*
*अर्जुन कृष्ण  को ध्यान से पतंग उड़ाते देख रहा था.*

*थोड़ी देर बाद अर्जुन बोला-*

*माधव.. ये धागे की वजह से पतंग अपनी आजादी से और ऊपर की ओर नहीं जा पा रही है, क्या हम इसे तोड़ दें ? ये और ऊपर चली जाएगी|*

*कृष्ण ने धागा तोड़ दिया ..*

*पतंग थोड़ा सा और ऊपर गई और उसके बाद लहरा कर नीचे आयी और दूर अनजान जगह पर जा कर गिर गई...*

*तब कृष्ण ने अर्जुन को जीवन का दर्शन समझाया...*
*पार्थ..  'जिंदगी में हम जिस ऊंचाई पर हैं..*
*हमें अक्सर लगता की कुछ चीजें, जिनसे हम बंधे हैं वे हमें और ऊपर जाने से रोक रही हैं; जैसे :*
            *-घर-*
        *-परिवार-*
      *-अनुशासन-*
    *-माता-पिता-*
       *-गुरू-और-*
          *-समाज-*

*और हम उनसे आजाद होना चाहते हैं...*

*वास्तव में यही वो धागे होते हैं - जो हमें उस ऊंचाई पर बना के रखते हैं..*

*इन धागों के बिना हम एक बार तो ऊपर जायेंगे परन्तु बाद में हमारा वो ही हश्र होगा, जो बिन धागे की पतंग का हुआ...'*

*अतः जीवन में यदि तुम ऊंचाइयों पर बने रहना चाहते हो तो, कभी भी इन धागों से रिश्ता मत तोड़ना.."*

*धागे और पतंग जैसे जुड़ाव* *के सफल संतुलन से मिली हुई ऊंचाई को ही 'सफल जीवन कहते हैं..!!*"

खाली अंतर्मन

*एक सन्यासी घूमते-फिरते एक दुकान पर आये | दुकान में अनेक छोटे-बड़े डिब्बे थे |*

*सन्यासी ने  एक डिब्बे की ओर इशारा करते हुए दुकानदार" से पूछा, "इसमें क्या है?"* 

*दुकानदार ने कहा, "इसमें नमक है।"*

*सन्यासी ने फिर पूछा, "इसके पास वाले में क्या है ?"*

*दुकानदार ने कहा, "इसमें हल्दी है।"*

*इसी प्रकार सन्यासी पूछ्ते गए और दुकानदार बतलाता रहा।*

*अंत मे पीछे रखे डिब्बे का नंबर आया, सन्यासी ने पूछा, "उस अंतिम डिब्बे में क्या है?"*

*दुकानदार बोला, "उसमें श्रीकृष्ण हैं।"*

*सन्यासी ने हैरान होते हुये पूछा, "श्रीकृष्ण !! भला यह "श्रीकृष्ण" किस वस्तु का नाम है भाई? मैंने तो इस नाम के किसी सामान के बारे में कभी नहीं सुना !"*

*दुकानदार सन्यासी के भोलेपन पर हंस कर बोला, "महात्मन! और डिब्बों मे तो भिन्न-भिन्न वस्तुएं हैं | पर यह डिब्बा खाली है| हम खाली को खाली नहीं कहकर 'श्रीकृष्ण' कहते हैं !"*
 
*संन्यासी की आंखें खुली की खुली रह गई ! जिस बात के लिये मैं दर-दर भटक रहा था, वो बात उसे आज, एक व्यापारी से समझ आ रही है।* वह सन्यासी उस छोटे से किराने के दुकानदार के चरणों में गिर पड़ा, *ओह, तो खाली में श्रीकृष्ण रहता है !*

*सत्य है! भरे हुए में श्रीकृष्ण को स्थान कहाँ?*

*काम, क्रोध, लोभ, मोह, लालच, अभिमान, ईर्ष्या, द्वेष और भली-बुरी, सुख-दुख, लाभ-हानि, जय-पराजय आदि बातों से जब दिल-दिमाग भरा रहेगा तो उसमें ईश्वर का वास कैसे होगा?*

परमात्मा की व्यवस्था

*यही जीवन है....*

कुछ लोग अपनी पढाई 22 साल की उम्र में पुर्ण कर लेते हैं मगर उनको कई सालों तक कोई अच्छी नौकरी नहीं मिलती, 

कुछ लोग 25 साल की उम्र में किसी कंपनी के सीईओ बन जाते हैं और 50 साल की उम्र में हमें पता चलता है वह नहीं रहे, 

जबकि कुछ लोग 50 साल की उम्र में सीईओ बनते हैं और 90 साल तक आनंदित रहते हैं,

बेहतरीन रोज़गार होने के बावजूद कुछ लोग अभी तक ग़ैर शादीशुदा है और कुछ लोग बग़ैर रोज़गार के भी शादी कर चुके हैं और रोज़गार वालों से ज़्यादा खुश हैं,

बराक ओबामा 55 साल की उम्र में रिटायर हो गये जबकि ट्रंप 70 साल की उम्र में शुरुआत करते है, 

कुछ लीजेंड परीक्षा में फेल हो जाने पर भी मुस्कुरा देते हैं और कुछ लोग एक नंबर कम आने पर भी रो देते हैं, 

किसी को बग़ैर कोशिश के भी बहुत कुछ मिल गया और कुछ सारी ज़िंदगी बस एड़ियां ही रगड़ते रहे,

इस दुनिया में हर शख़्स अपने टाइम ज़ोन की बुनियाद पर काम कर रहा है, 

ज़ाहिरी तौर पर हमें ऐसा लगता है कुछ लोग हमसे बहुत आगे निकल चुके हैं,
और शायद ऐसा भी लगता हो कुछ हमसे अभी तक पीछे हैं, 

लेकिन हर व्यक्ति अपनी अपनी जगह ठीक है अपने अपने वक़्त के मुताबिक़....!!

किसी से भी अपनी तुलना मत कीजिए..

अपने टाइम ज़ोन में रहें
इंतज़ार कीजिए और
इत्मीनान रखिए...

ना ही आपको देर हुई है और ना ही जल्दी, 

परमपिता परमेश्वर ने हम सबको अपने हिसाब से डिजा़इन किया है वह जानता है कौन कितना बोझ उठा सकता है किस को किस वक़्त क्या देना है, 

विश्वास रखिए भगवान की ओर से हमारे लिए जो फैसला किया गया है वह सर्वोत्तम ही है।

हिंदी का चमत्कार

*ये चमत्कार हिंदी में ही हो सकता है …!!*
🙏🙏🥰🙏🙏💘

*चार मिले चौसठ खिले, बीस रहे कर जोड़!*
*प्रेमी-प्रेमी दो मिले, खिल गए सात करोड़!!*

मुझसे एक बुजुर्गवार ने इस कहावत का अर्थ पूछा। 🙏
काफी सोच-विचार के बाद भी जब मैं बता नहीं पाया, तब मैंने कहा – बाबा आप ही बताइए, मेरी समझ में तो कुछ नहीं आ रहा।

तब एक रहस्यमयी😍 मुस्कान के साथ बाबा समझाने लगे – 

देखो भाग्यवान, यह बड़े रहस्य की बात है – *चार मिले –* मतलब जब भी कोई मिलता है, तो सबसे पहले आपस में दोनों की आंखें मिलती हैं।👁️👃👁️ इसलिए कहा, चार मिले।

फिर कहा, *चौसठ खिले –*🤩 यानि बत्तीस-बत्तीस दांत – दोनों के मिलाकर चौसठ हो गए – इस तरह “चार मिले, चौसठ खिले” – हुआ!

*“बीस रहे कर जोड़”*🙏🙏 – दोनों हाथों की दस उंगलियां – दोनों व्यक्तियों की 20 हुईं – बीसों मिलकर ही एक-दूसरे को प्रणाम की मुद्रा में हाथ बरबस उठ ही जाते हैं!

वैसे तो शरीर में रोम की गिनती करना असम्भव है,🤷🏻‍♂️ लेकिन मोटा-मोटा अर्थात् अनुमानतः साढ़े तीन करोड़ कहते हैं कहने वाले। तो कवि ने अंतिम रहस्य भी प्रकट कर दिया *– “प्रेमी प्रेमी दो मिले – खिल गए सात करोड़!”*

ऐसा अंतर्हृदय में बसा हुआ प्रिय व्यक्ति जब कोई मिलता है, तो रोम-रोम खिलना स्वाभाविक ही है भाई।

जैसे ही कोई ऐसा मिलता है, तो कवि ने अंतिम पंक्ति में पूरा रस निचोड़ दिया – *“खिल गए सात करोड़”* यानि हमारा रोम-रोम खिल जाता है!

भई वाह, आनंद आ गया। हमारी हिंदी कहावतों में कितना सार छुपा है। एक-एक शब्द चाशनी में डूबा हुआ। 

🙏🙏🙏🙏

Sunday, October 4, 2020

विश्वास believe विश्वास trust

*विश्वास (believe) तथा विश्वास (trust) में अंतर*

*एक बार, दो बहुमंजिली इमारतों के बीच, बंधी हुई एक तार पर लंबा सा बाँस पकड़े, एक नट चल रहा था । उसने अपने कन्धे पर अपना बेटा बैठा रखा था ।*

*सैंकड़ों, हज़ारों लोग दम साधे देख रहे थे। सधे कदमों से, तेज हवा से जूझते हुए, अपनी और अपने बेटे की ज़िंदगी दाँव पर लगाकर, उस कलाकार ने दूरी पूरी कर ली ।*

*भीड़ आह्लाद से उछल पड़ी, तालियाँ, सीटियाँ बजने लगी ।।*

*लोग उस कलाकार की फोटो खींच रहे थे, उसके साथ सेल्फी ले रहे थे। उससे हाथ मिला रहे थे । वो कलाकार माइक पर आया, भीड़ को बोला, "क्या आपको विश्वास है कि मैं यह दोबारा भी कर सकता हूँ ??"*

*भीड़ चिल्लाई, "हाँ हाँ, तुम कर सकते हो ।"*

*उसने पूछा, क्या आपको विश्वास है,भीड़ चिल्लाई हाँ पूरा विश्वास है, हम तो शर्त भी लगा सकते हैं कि तुम सफलता पूर्वक इसे दोहरा भी सकते हो।*

*कलाकार बोला, पूरा पूरा विश्वास है ना*

*भीड़ बोली, हाँ हाँ*

*कलाकार बोला, "ठीक है, कोई मुझे अपना बच्चा दे दे, मैं उसे अपने कंधे पर बैठा कर रस्सी पर चलूँगा ।"*

*खामोशी, शांति, चुप्पी फैल गयी।*

*कलाकार बोला, "डर गए...!" अभी तो आपको विश्वास था कि मैं कर सकता हूँ। असल मे आप का यह विश्वास (believe) है, मुझमेँ विश्वास (trust) नहीं है।दोनों विश्वासों में फर्क है साहेब!*

*यही कहना है, "ईश्वर हैं !" ये तो विश्वास है! परन्तु ईश्वर में सम्पूर्ण विश्वास नहीं है ।*

*You believe in God, but you don't trust him.*

*अगर ईश्वर में पूर्ण विश्वास है तो चिंता, क्रोध, तनाव क्यों ???   जरा सोचिए !!!*
🙏🙏जय माता दी🙏🙏

जिंदगी

*✍..खुश रहकर गुजारो,तो मस्त है जिदंगी,!*
*दुखी रहकर गुजारो,तो त्रस्त है जिंदगी!*
*तुलना में गुजारो,तो पस्त है जिंदगी!*
*इतंजार में गुजारो, तो सुस्त है जिंदगी!*
*सीखने में गुजारो,तो किताब है जिंदगी!*
*दिखावे में गुजारो,तो बर्बाद है जिदंगी!* 
*मिलती है एक बार,प्यार से बिताओ जिदंगी!*
*जन्म तो रोज होते हैं,यादगार बनाओ जिंदगी!!*
*🌹जय माता दी🌹*👏

Tuesday, September 29, 2020

जिंदगी

*✍..खुश रहकर गुजारो,तो मस्त है जिदंगी,!*
*दुखी रहकर गुजारो,तो त्रस्त है जिंदगी!*
*तुलना में गुजारो,तो पस्त है जिंदगी!*
*इतंजार में गुजारो, तो सुस्त है जिंदगी!*
*सीखने में गुजारो,तो किताब है जिंदगी!*
*दिखावे में गुजारो,तो बर्बाद है जिदंगी!* 
*मिलती है एक बार,प्यार से बिताओ जिदंगी!*
*जन्म तो रोज होते हैं,यादगार बनाओ जिंदगी!!*
*🌹जय माता दी🌹*👏

राम औऱ रावण

*श्रीराम ने रामेश्वरम ने जब शिवलिंग की स्थापना की तब आचार्यत्व के लिए महापंडित रावण को निमंत्रित किया था...*

रावण ने उस निमंत्रण को स्वीकार किया और उस अनुष्ठान का आचार्य बना । रावण त्रिकालज्ञ था, उसे पता था कि उसकी मृत्यु सिर्फ श्रीराम के हाथों लिखी है । वह कुछ भी दक्षिणा माँग सकता था ।पर उसने क्या विचित्र दक्षिणा माँगी वह भी इस लेख में पढ़िए >>> 

रावण केवल शिव भक्त, विद्वान एवं महावीर ही नहीं, अति-मानववादी भी था... उसेभविष्य का पता था... वह जानता था कि रामसे जीत पाना उसके लिए असंभव था... 
जामवंत जी को आचार्यत्व का निमंत्रण देने के लिए लंका भेज गया... जामवन्त दीर्घाकार थे । पहले हनुमान, फिर अंगद और अब जामवन्तजी । यह भयानक समाचार विद्युत वेग की भाँति पूरी लंकानगरी में फैल गया । इस घबराहट से सबके हृदय की धड़कनें लगभग बैठ सी गई । जामवन्त देखने में हनुमान और अंगद से अधिक ही भयावह थे ।सागर सेतु लंका मार्ग प्रायः सुनसान मिला । कहीं-कहीं कोई मिले भी तो वे डर के मारे बिना पूछे राजपथ की ओर संकेत कर देते... बोलने का किसी में साहस नहीं था । प्रहरी भी हाथ जोड़कर मार्ग दिखा रहे थे । इस प्रकार जामवन्त को किसी से कुछ पूछना नहीं पड़ा । यह समाचार द्वारपाल ने लगभग दौड़कर रावण तक पहुँचाया । स्वयं रावण उन्हें राजद्वार तक लेने आए । रावण को अभिवादन का उपक्रम करते देख जामवन्त ने मुस्कराते हुए कहा कि मै अभिनंदन का पात्र नहीं हूँ । मैं वनवासी श्रीराम का दूत बनकर आया हूँ । उन्होंने तुम्हें सादर प्रणाम कहाँ है । रावण ने सविनय कहा – आप हमारे पितामह के भाई हैं, इस नाते आप हमारे पूज्य हैं । आप कृपया आसन ग्रहण करें । यदि आप मेंरा निवेदन स्वीकार कर लेंगे तभी संभवतः मैं भी आपका संदेश सावधानी से सुन सकूंगा । जामवन्त ने कोई आपत्ति नहीं की । उन्होंने आसन ग्रहण किया । रावण ने भी अपना स्थान ग्रहण किया । 
तदुपरान्त जामवन्त ने पुनः कहाँ कि वनवासी श्रीराम ने तुम्हें प्रणाम कहा है । वे सागर-सेतु निर्माण उपरांत अब यथाशीघ्र महेश्वर-लिंग-विग्रह की स्थापना करना चाहते हैं । 
*इस अनुष्ठान को सम्पन्न कराने के लिए उन्होने ब्राह्मण, वेदज्ञ और शैव महापंडित रावण को आचार्य पद पर वरण करने की इच्छा  प्रकट की है । मैं उनकी ओर से आपको आमंत्रित करने आया हूँ ।* 
रावण ने मुस्कान भरे स्वर में पूछ ही लिया कि क्या श्रीराम द्वारा महेश्वर-लिंग-विग्रह स्थापना लंका-विजय की कामना से किया जारहा है ? 
बिल्कुल ठीक । श्रीराम की महेश्वर के चरणों में पूर्ण भक्ति है । जामवन्त बोले ।

प्रहस्त आँख तरेरते हुए गुर्राया – अत्यंत धृष्टता, नितांत निर्लज्जता । लंकेश्वर ऐसा प्रस्ताव कभी भी स्वीकार नहीं करेंगे ।मातुल ! तुम्हें किसने मध्यस्थता करने को कहा ? लंकेश ने कठोर स्वर में फटकार दिया । जीवन में प्रथम बार किसी ने रावण को ब्राह्मण माना है और आचार्य बनने योग्य जाना है । क्या रावण इतना अधिक मूर्ख कहलाना चाहेगा कि वह भारतवर्ष के प्रथम प्रशंसित महर्षि पुलस्त्य के सगे भाई महर्षि वशिष्ठ के यजमान का आमंत्रण और अपने आराध्य की स्थापना हेतु आचार्य पद अस्वीकार कर दिया । 
लेकिन हाँ । यह जाँच तो नितांत आवश्यक है ही कि जब वनवासी राम ने इतना बड़ा आचार्य पद पर पदस्थ होने हेतु आमंत्रित किया है तब वह भी यजमान पद हेतु उचित अधिकारी है भी अथवा नहीं । 
जामवंत जी ! आप जानते ही हैं कि त्रिभुवन विजयी अपने इस शत्रु की लंकापुरी में आप पधारे हैं । यदि हम आपको यहाँ बंदी बना लें और आपको यहाँ से लौटने न दें तो आप क्या करेंगे ? जामवंत खुलकर हँसे । मुझे निरुद्ध करने की शक्ति समस्त लंका के दानवों के संयुक्त प्रयास में नहीं है, किन्तु मुझे किसी भी प्रकार की कोई विद्वत्ता प्रकट करने की न तो अनुमति है और न ही आवश्यकता । ध्यान रहे, मैं अभी एक ऐसे उपकरण के साथ यहां विद्यमान हूँ, जिसके माध्यम से धनुर्धारी लक्ष्मण यह दृश्यवार्ता स्पष्ट रूप से देख-सुन रहे हैं । जब मैं वहाँ से चलने लगा था तभी धनुर्वीर लक्ष्मण वीरासन में बैठे हुए हैं । उन्होंने आचमन करके अपने त्रोण से पाशुपतास्त्र निकाल कर संधान कर लिया है और मुझसे कहा है कि जामवन्त ! रावण से कह देना कि यदि आप में से किसी ने भी मेरा विरोध प्रकट करने की चेष्टा की तो यह पाशुपतास्त्र समस्त दानव कुल के संहार का संकल्प लेकर तुरन्त छूट जाएगा । इस कारण भलाई इसी में है कि आप मुझे अविलम्ब वांछित प्रत्युत्तर के साथ सकुशल और आदर सहित धनुर्धर लक्ष्मण के दृष्टिपथ तक वापस पहुँचने की व्यवस्था करें । 
उपस्थित दानवगण भयभीत हो गए । प्रहस्थ का शरीर पसीने से लथपथ हो गया । लंकेश तक काँप उठे । पाशुपतास्त्र ! महेश्वर का यह अमोघ अस्त्र तो सृष्टि में एक साथ दो धनुर्धर प्रयोग ही नहीं कर सकते । अब भले ही वह रावण मेघनाथ के त्रोण में भी हो । जब लक्ष्मण ने उसे संधान स्थिति में ला ही दिया है, तब स्वयं भगवान शिव भी अब उसे उठा नहीं सकते । उसका तो कोई प्रतिकार है ही नहीं । 
रावण ने अपने आपको संभाल कर कहा – आप पधारें । यजमान उचित अधिकारी है । उसे अपने दूत को संरक्षण देना आता है । श्रीराम से कहिएगा कि मैंने उसका आचार्यत्व स्वीकार किया। 

जामवन्त को विदा करने के तत्काल उपरान्त लंकेश ने सेवकों को आवश्यक सामग्री संग्रह करने हेतु आदेश दिया और स्वयं अशोक वाटिका पहुँचे ।
जो आवश्यक उपकरण यजमान उपलब्ध न कर सके जुटाना आचार्य का परम कर्त्तव्य होता है। रावण जानता है कि वनवासी श्रीराम के पास क्या है और क्या होना चाहिए । अशोक उद्यान पहुँचते ही रावण ने सीता से कहा कि राम लंका विजय की कामना से समुद्र तट पर महेश्वर लिंग विग्रह की स्थापना करने जा रहे हैं और रावण को आचार्य वरण किया है । यजमान का अनुष्ठान पूर्ण हो यह दायित्व आचार्य का भी होता है । तुम्हें विदित है कि अर्द्धांगिनी के बिना गृहस्थ के सभी अनुष्ठान अपूर्ण रहते हैं । विमान आ रहा है, उस पर बैठ जाना । ध्यान रहे कि तुम वहाँ भी रावण के अधीन ही रहोगी । अनुष्ठान समापन उपरान्त यहाँ आने के लिए विमान पर पुनः बैठ जाना । 
स्वामी का आचार्य अर्थात् स्वयं का आचार्य । यह जान जानकीजी ने दोनों हाथ जोड़कर मस्तक झुका दिया । 
स्वस्थ कण्ठ से सौभाग्यवती भव कहते रावण ने दोनों हाथ उठाकर भरपूर आशीर्वाद दिया ।सीता और अन्य आवश्यक उपकरण सहित रावण आकाश मार्ग से समुद्र तट पर उतरा । आदेश मिलने पर आना कहकर सीता को उसने विमान में ही छोड़ा और स्वयं श्रीराम के सम्मुख पहुँचा । 
जामवन्त से संदेश पाकर भाई, मित्र और सेना सहित श्रीराम स्वागत सत्कार हेतु पहले से ही तत्पर थे । सम्मुख होते ही वनवासी राम ने आचार्य दशग्रीव को हाथ जोड़कर प्रणाम किया । 
दीर्घायु भव ! लंका विजयी भव ! दशग्रीव के आशीर्वचन के शब्द ने सबको चौंका दिया । 
सुग्रीव ही नहीं विभीषण की भी उसने उपेक्षा कर दी । जैसे वे वहाँ हों ही नहीं ।भूमि शोधन के उपरान्त आचार्य रावण ने कहा कि यजमान ! अर्द्धांगिनी कहाँ है ? उन्हें यथास्थान आसन दें । 
श्रीराम ने मस्तक झुकाते हुए हाथ जोड़कर अत्यन्त विनम्र स्वर से प्रार्थना की कि यदि यजमान असमर्थ हो तो योग्याचार्य सर्वोत्कृष्ट विकल्प के अभाव में अन्य समकक्ष विकल्प से भी तो अनुष्ठान सम्पादन कर सकते हैं । 
अवश्य-अवश्य, किन्तु अन्य विकल्प के अभाव में ऐसा संभव है, प्रमुख विकल्प के अभाव में नहीं । यदि तुम अविवाहित, विधुर अथवा परित्यक्त होते तो संभव था । इन सबके अतिरिक्त तुम सन्यासी भी नहीं हो और पत्नीहीन वानप्रस्थ का भी तुमने व्रत नहीं लिया है । इन परिस्थितियों में पत्नी रहित अनुष्ठान तुम कैसे कर सकते हो ? 
कोई उपाय आचार्य ? आचार्य आवश्यक साधन, उपकरण अनुष्ठान उपरान्त वापस ले जाते हैं । स्वीकार हो तो किसी को भेज दो, सागर सन्निकट पुष्पक विमान में यजमान पत्नी विराजमान हैं । 
श्रीराम ने हाथ जोड़कर मस्तक झुकाते हुए मौन भाव से इस सर्वश्रेष्ठ युक्ति को स्वीकार किया ।
श्री रामादेश के परिपालन में विभीषण मंत्रियों सहित पुष्पक विमान तक गए और सीता सहित लौटे । अर्द्ध यजमान के पार्श्व में बैठो अर्द्ध यजमान । आचार्य के इस आदेश का वैदेही ने पालन किया ।

गणपति पूजन, कलश स्थापना और नवग्रह पूजन उपरान्त आचार्य ने पूछा लिंग विग्रह ? 
यजमान ने निवेदन किया कि उसे लेने गत रात्रि के प्रथम प्रहर से पवनपुत्र कैलाश गए हुए हैं । अभी तक लौटे नहीं हैं । आते ही होंगे । 
आचार्य ने आदेश दे दिया विलम्ब नहीं किया जा सकता । उत्तम मुहूर्त उपस्थित है । इसलिए अविलम्ब यजमान-पत्नी बालुका-लिंग-विग्रह स्वयं बना ले । 
जनक नंदिनी ने स्वयं के कर-कमलों से समुद्र तट की आर्द्र रेणुकाओं से आचार्य के निर्देशानुसार यथेष्ट लिंग-विग्रह निर्मित की ।
 यजमान द्वारा रेणुकाओं का आधार पीठ बनाया गया । 
श्रीसीतारामने वही महेश्वर लिंग-विग्रह स्थापित किया । आचार्य ने परिपूर्ण विधि-विधान के साथ अनुष्ठान सम्पन्न कराया ।

अब आती है बारी आचार्य की दक्षिणा की...
राम ने पूछा आपकी दक्षिणा? 
पुनःएक बार सभी को चौंकाया आचार्य के शब्दों ने - घबराओ नहीं यजमान !  स्वर्णपुरी के स्वामी की दक्षिणा सम्पत्ति नहीं हो सकती । आचार्य जानते हैं कि उनका यजमान वर्तमान में वनवासी है, लेकिन फिर भी राम अपने आचार्य कि जो भी माँग हो उसे पूर्ण करने की प्रतिज्ञा करता है ।आचार्य जब मृत्यु शैय्या ग्रहण करे तब यजमान सम्मुख उपस्थित रहे । आचार्य ने अपनी दक्षिणा मांगी । 
ऐसा ही होगा आचार्य । यजमान ने वचन दिया और समय आने पर निभाया भी ।
 *रघुकुल रीति सदा चली आई । प्राण जाई पर वचन न जाई ।*
यह दृश्य वार्ता देख सुनकर सभी ने उपस्थित समस्त जन समुदाय के नयनाभिराम प्रेमाश्रुजल से भर गए । सभी ने एक साथ एक स्वर से सच्ची श्रद्धा के साथ इस अद्भुत आचार्य को प्रणाम किया । रावण जैसे भविष्यदृष्टा ने जो दक्षिणा माँगी, उससे बड़ी दक्षिणा क्या हो सकती थी ? जो रावण यज्ञ-कार्य पूरा करने हेतु श्रीराम की बंदी पत्नी को शत्रु के समक्ष प्रस्तुत कर सकता है, व श्रीराम से लौट जाने की दक्षिणा कैसे मांग सकता है ? 
बहुत कुछ हो सकता था... काश ! श्रीराम को वनवास न होता...  काश ! सीता वन न जाती... किन्तु ये धरती तो है ही पाप भुगतने वालों के लिए और जो यहाँ आया है उसे अपने पाप भुगतने होंगे और इसलिए रावण जैसा पापी लंका का स्वामी तो हो सकता है देवलोक का नहीं । 
वह तपस्वी महापंडित रावण जिसे मिला था-ब्रह्मा से विद्वता और अमरता का वरदान... शिव भक्ति से पाया शक्ति का वरदान... 
चारों वेदों का ज्ञाता, ज्योतिष विद्या मे पारंगत, अपने घर की वास्तु शांति हेतु आचार्य रूप में जिसे-भगवन शंकर ने किया आमंत्रित... शिव भक्त रावण-रामेश्वरम में शिवलिंग पूजा हेतु अपने शत्रु प्रभु श्रीराम का जिसने स्वीकार किया निमंत्रण...

नवरात्रि पर्व उपवास

*नवरात्र‍ि में कर रहे हैं व्रत, तो सेहत को होंगे ये 8 फायदे* 
 
1 नवरात्रि में व्रत रखने पर ऐसे लोग भी जल्दी उठते हैं, जिन्हें रोजाना देर तक सोने की आदत होती है। लगातार 9 दिन तक ऐसा करने पर इसका असर आपके शरीर, ऊर्जा और मानसिक सेहत पर सकारात्मक रूप से पड़ता है।
2 व्रत के साथ पूजा-पाठ की जाती है, जो मानसिक शांति और तनाव कम करने में मददगार होता है। इससे आपका मानसिक स्तर सुधरता है, साथ ही आप प्रसन्न रहते हैं।
3 खाने पीने में परहेज करने का असर भी आपकी शारीरिक और मानसिक सेहत पर पड़ता है। इन दिनों आप नमक और अन्य कैलोरी फूड नहीं खाते और फल, दूध एवं जूस का सेवन ज्यादा करते हैं जिससे आपका वजन नियंत्रित होता है।
4 फलाहार और तरल पदार्थों का सेवन पाचन तंत्र को बेहतर बनाता है, जिसे आपको कब्ज, गैस और अपच जैसी समस्याओं से राहत मिलती है।
5 व्रत में आप शराब, सिगरेट एवं अन्य धूम्रपान संबधी चीजों का सेवन नहीं करते, जिससे आपकी बिगड़ती सेहत पर कंट्रोल होता है, और नुकसान से भी बचते हैं।
6 व्रत रखने से शरीर के अंदर से कोलेस्ट्राल की मात्रा कम होती है, जिससे आपकी बॉडी के साथ ही दिल और बाकी अंगों की फिटनेस बढ़ती है।
7 इन दिनों में तापमान अधिक होता है और प्यास भी ज्यादा लगती है। ऐसे में जब आप भरपूर पानी और तरल पदार्थों का सेवन करते हैं तो डिहाइड्रेशन नहीं होता और आप ज्यादा फ्रेश रहते हैं।
8 इन दिनों आप आध्यात्मिक होते हैं। आध्यात्‍म का आपकी मानसिक और आत्मिक सेहत में वृद्धि होती है और आपको अतिरिक्त ऊर्जा का एहसास होता है।

अपने पराए

एक  हृदयस्पर्शी  घटना 

सुबह सूर्योदय हुआ ही था कि  एक वयोवृद्ध डॉक्टर के दरवाजे पर आकर घंटी बजाने लगा।  सुबह-सुबह कौन आ गया? कहते हुए डॉक्टर की पत्नी ने दरवाजा खोला।
 वृद्ध को देखते ही डॉक्टर की पत्नी ने कहा,
 दादा आज इतनी सुबह?  क्या परेशानी हो गयी आपको? 
 वयोवृद्ध ने कहा मेरे अंगूठे के टांके कटवाने आया हूं ,डॉक्टर साहब के पास ।मुझे 8:30 बजे दूसरी जगह पहुंचना होता है, इसलिए जल्दी आया ।
सॉरी डॉक्टर ।
डाक्टर के पड़ोस वाले मोहल्ले में ही वयोवृद्ध का निवास था, जब भी जरूरत पड़ती वह डॉक्टर के पास आते थे ।इसलिए डाक्टर उनसे  परिचित था। उसने कमरे से बाहर आकर कहा ,
 कोई बात नहीं दादा ।बैठो ।
बताओ आप का अंगूठा ।
डॉक्टर ने पूरे ध्यान से अंगूठे के टांके खोले ,और कहा कि 
 दादा बहुत बढ़िया है। आपका घाव भर गया है ।फिर भी मैं पट्टी लगा देता हूं कि कहीं पर चोंट न पहुंचे ।
डाक्टर  तो बहुत होते हैं  परंतु  यह डॉक्टर  बहुत  हमदर्दी रखने वाले  आदमी का रखने वाले  और  दयालु थे 
डॉक्टर ने पट्टी लगाकर के पूछा 
 दादा आपको कहां पहुंचना पड़ता है 8:30 बजे ।आपको देर हो गई हो तो मैं चलकर आपको छोड़ आता हूं ।
वृद्ध ने कहा कि नहीं नहीं डॉक्टर साहब ,अभी तो मैं घर जाऊंगा ,नाश्ता तैयार करूंगा ,फिर निकलूंगा ,और बराबर 9:00 बजे पहुंच जाऊंगा ।
उन्होंने डॉक्टर का आभार माना और जाने के लिए खड़े हुए ।
बिल लेकर के उपचार करने वाले तो बहुत डॉक्टर होते हैं ,परंतु दिल से उपचार करने वाले कम होते हैं ।
दादा खड़े हुए तभी डॉक्टर की पत्नी ने आकर कहा कि दादा नाश्ता यहीं कर लो ।
वृद्ध ने कहा कि ना बेन। 
 मैं तो यहां नाश्ता यहां कर लेता ,परंतु उसको नाश्ता कौन कराएगा,
 डॉक्टर ने पूछा किस को नाश्ता कराना है ?
तब वृद्ध ने कहा कि मेरी पत्नी को ।
* तो वह कहां रहती है ?और 9:00 बजे आपको उसके यहां कहां पहुंचना है ?
 वृद्ध ने कहा -डॉक्टर साहब वह तो मेरे बिना रहती  ही नहीं थी ,परंतु अब। वह अस्वस्थ है ,
तो नर्सिंग होम में है ।
डॉक्टर ने पूछा -क्यों ,उनको क्या तकलीफ है ।वृद्ध व्यक्ति ने कहा,  मेरी पत्नी को अल्जाइमर हो गया है ,उसकी याददाश्त चली गई है ।
पिछले 5 साल से। वह मेरे को पहचानती नहीं है। मैं नर्सिंग होम में जाता हूं ,उसको नाश्ता खिलाता हूं ,तो वह फटी आंख से शून्य  नेत्रों से मुझे देखती है। मैं उसके लिए अनजाना हो गया हूं।
 ऐसा कहते कहते वृद्ध की आंखों में आंसू आ गए ।
डॉक्टर और उसकी पत्नी की आंखें भी गीली हो गई"।
याद रखें  
प्रेम निस्वार्थ होता है  ,प्रेम सब  के पास होता है  परंतु एक पक्षिय  प्रेम !यह दुर्लभ है ।पर होता हे जरूर ।
कबीर ने लिखा है  
प्रेम ना बाड़ी उपजे  ,प्रेम न हाट बिकाय ।
 बाजार में नहीं मिलता है  यह। 
डॉक्टर और उसकी  पत्नी ने कहा 
 दादा  5 साल से आप रोज नर्सिंग होम में उनको नाश्ता करने जाते हो  ?आप इतने वृद्ध।
 आप थकते नहीं हो ,ऊबते नहीं हो  ?
उन्होंने कहा कि  मैं  तीन बार जाता हूं  

डॉक्टर साहब  उसने जिंदगी में मेरी बहुत सेवा की और आज  मैं उसके सहारे जिंदगी जी रहा हूं  ।उसको देखता हूं  तो मेरा मन भर आता है ।    मैं  उसके पास बैठता हूं  तो मुझ में शक्ति आ जाती  है। अगर वह न होती  तो अभी तक मैं भी बिस्तर पकड़ लेता ,लेकिन  उसको ठीक करना है ,उसकी  संभाल करना है  ,इसलिए मुझ में रोज ताकत आ जाती है।  उसके कारण ही मुझ में इतनी फुर्ती है।  सुबह उठता हूं तो तैयार होकर के काम में लग जाता हूं  ।यह भाव रहता है कि उसको मिलने जाना है ,उसके साथ नाश्ता करना है, उसको नाश्ता कराना है  ।
उसके साथ नाश्ता करने का आनंद ही अलग है । मैं अपने हाथ से  उसको नाश्ता खिलाता हूं डॉक्टर ने कहा दादा एक बात पूछूं
 पूछो ना डॉक्टर साहब ।
डॉक्टर ने कहां दादा ,
वह तो आपको पहचानती नहीं ,न तो आपके सामने बोलती है, न हंसती है ,तो भी तुम मिलने जाते हो ।
तब उस समय  वृद्ध ने जो शब्द कहे ,वह शब्द दुनिया में सबसे अधिक हृदयस्पर्शी और मार्मिक हैं। 
 वृद्ध  बोले ,डॉक्टर साहब -वह नहीं जानती कि मैं कौन हूं ,पर मैं तो जानता हूं ना कि वह कौन है ।
और इतना कहते कहते हैं वृद्ध की आंखों से पानी की धारा बहने लगी। 
 डॉक्टर और उनकी पत्नी की आंखें भी भर आई ।
कहानी तो पूरी होगी परंतु पारिवारिक जीवन में स्वार्थ अभिशाप है ,और प्रेम आशीर्वाद है।
 प्रेम कम होता है तभी परिवार टूटता है ।
अपने घर में अपने माता पिता को प्रेम करना
 जो लोग यह कहते हैं अपने पिता के लिए कि साठी ,बुद्धि  न्हाटी,  उनको यह कथा 10 बार पढ़वाना ।
यह शब्द 
"वह नहीं जानती कि मैं कौन हूं परंतु मैं तो जानता हूं "
यह शब्द शायद परिवार में प्रेम का प्रवाह प्रवाहित कर दें। 

🌙
*अपने वो नहीं, जो तस्वीर में साथ दिखे,*
*अपने तो वो है, जो तकलीफ में  साथ दिखे!*

❤️LOVE YOU ALL MY FAMILY MEMBERS AND PERENTS ❤️
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पीपल वृक्ष

पीपल के लाभ

1-अकेला ऐसा पौधा जो दिन और रात दोनो समय आक्सीजन देता है

2- पीपल के ताजा 5 पत्ते लेकर 500 ग्राम पानी मे डालकर 500 ग्राम रहने तक उबाले,ठंडा होने पर पिए ब्रर्तन स्टील और एल्युमिनियम का नहीं हो, आपका ह्रदय एक ही दिन में ठीक होना शुरू हो जाएगा

3- पीपल के पत्तो पर भोजन करे, लीवर ठीक हो जाता है

4-पीपल के सूखे पत्तों का पाउडर बनाकर आधा चम्मच गुड़ में मिलाकर सुबह दोपहर शाम खायेँ, किंतना भी पुराना दमा ठीक कर देता है

5-पीपल के ताजा 4-5 पत्ते लेकर पीसकर पानी मे मिलाकर पिलाये,1- 2 बार मे ही पीलिया में आराम देना शुरू कर देता है

6-पीपल की छाल को गंगाजल में घिसकर घाव में लगाये तुरंत आराम देता है

7-पीपल की छाल को खांड (चीनी )मिलाकर दिन में 5-6 बार चूसे, कोई भी नशा छूट जाता है

8-पीपल के पत्तों का काढ़ा पिये, फेफड़ो, दिल ,अमाशय और लीवर के सभी रोग ठीक कर देता है

7-पीपल के पत्तों का काढ़ा बनाकर पिये, किडनी के रोग ठीक कर देता है व पथरी को तोड़कर बाहर करता है

8-किंतना भी डिप्रेशन हो, पीपल के पेड़ के नीचे जाकर रोज 30 मिनट बैठिए डिप्रेशन खत्म कर देता है

9-पीपल की फल और ताजा कोपले लेकर बराबर मात्रा में लेकर पीसकर सुखाकर खांड मिलाकर दिन में 2 बार ले, महिलाओ के गर्भशाय और मासिक समय के सभी रोग ठीक करता है

10-पीपल का फल और ताजा कोपले लेकर बराबर मात्रा में लेकर पीसकर सुखाकर खांड मिलाकर दिन में 2 बार ले, बच्चो का तुतलाना ठीक कर देता है और दिमाग बहुत तेज करता है

11-जिन बच्चो में हाइपर एक्टिविटी होती है, जो बच्चे दिनभर रातभर दौड़ते भागते है सोते कम है, पीपल के पेड़ के नीचे बैठाइए सब ठीक कर देता है

12-कितना भी पुराना घुटनो का दर्द हो, पीपल के नीचे बैठे 30-45 दिन में सब खत्म हो जाएगा

13-शरीर मे कही से भी खून आये, महिलाओ को मासिक समय मे रक्त अधिक आता हो, बाबासीर में रक्त आता हो, दांत निकलवाने पर रक्त आये ,चोट लग जाये, 8-10 पत्ते पीसकर,छानकर पी जाएं, तुंरत रक्त का बहना बंद कर देता है

14-शरीर मे कही भी सूजन हो, दर्द हो, पीपल के पत्तों को गर्म करके बांध दे, ठीक हो जायेगे

Monday, September 28, 2020

ओशो महामारी के लिए क्या कहते हैं

*ओशो*(आचार्य रजनिश) गजब का *ज्ञान* दे गये, *कोरोना* जैसी *जगत बिमारी* के लिए

*70* के *दशक* में *हैजा* भी *महामारी* के रूप में पूरे *विश्व* में फैला था, तब *अमेरिका* में किसी ने *ओशो रजनीश जी* से प्रश्न किया
-"इस *महामारी* से कैसे  बचे ?"

*ओशो* ने विस्तार से जो समझाया वो आज *कोरोना* के सम्बंध में भी बिल्कुल *प्रासंगिक* है।

                       *ओशो*

"यह *प्रश्न* ही आप *गलत* पूछ रहे हैं,

*प्रश्न* ऐसा होना चाहिए था कि *महामारी* के कारण मेरे मन में *मरने का जो डर बैठ गया है* उसके सम्बन्ध में कुछ कहिए!

इस *डर* से कैसे बचा जाए...?

क्योंकि *वायरस* से *बचना* तो बहुत ही *आसान* है,

लेकिन जो *डर* आपके और *दुनिया* के *अधिकतर लोगों* के *भीतर* बैठ गया है, उससे *बचना* बहुत ही *मुश्किल* है।

अब इस *महामारी* से कम लोग, इसके *डर* के कारण लोग ज्यादा *मरेंगे*.......।

*’डर’* से ज्यादा खतरनाक इस *दुनिया* में कोई भी *वायरस* नहीं है।

इस *डर* को समझिये, 
अन्यथा *मौत* से पहले ही आप एक *जिंदा* लाश बन जाएँगे।

यह जो *भयावह माहौल* आप अभी देख रहे हैं, इसका *वायरस* आदि से कोई *लेना* *देना* नहीं है

ऐसा पहले भी *हजारों* बार हुआ है, और आगे भी होता रहेगा और आप देखेंगे कि आने वाले बरसों में युद्ध *तोपों* से नहीं बल्कि *जैविक हथियारों* से लड़ें जाएंगे।

🌹मैं फिर कहता हूं हर समस्या *मूर्ख* के लिए *डर* होती है, जबकि *ज्ञानी* के लिए *अवसर*!!
इस *महामारी* में आप *घर* बैठिए, *पुस्तकें पढ़िए*, शरीर को कष्ट दीजिए और *व्यायाम* कीजिये, *फिल्में* देखिये, *योग*  कीजिये और एक माह में *15* किलो वजन घटाइए, चेहरे पर बच्चों जैसी ताजगी लाइये
अपने *शौक़* पूरे कीजिए।

मुझे अगर *15* दिन घर  बैठने को कहा जाए तो में इन *15* दिनों में *30* पुस्तकें पढूंगा और नहीं तो एक *बुक* लिख डालिये, इस *महामन्दी* में पैसा *इन्वेस्ट* कीजिये, ये अवसर है जो *बीस तीस* साल में एक बार आता है *

☘ यह सिर्फ़ एक *सामूहिक पागलपन* है जो *अखबारों* और *TV* के माध्यम से *भीड़* को बेचा जा रहा है

*ओशो* कहते है...TV पर खबरे सुनना या *अखबार* पढ़ना बंद करें

ऐसा कोई भी *विडियो* या *न्यूज़* मत देखिये जिससे आपके भीतर *डर* पैदा हो...

*महामारी* के बारे में बात करना *बंद* कर दीजिए, 

*डर* भी एक तरह का *आत्म-सम्मोहन* ही है। 

एक ही तरह के *विचार* को बार-बार *घोकने* से *शरीर* के भीतर *रासायनिक* बदलाव  होने लगता है और यह *रासायनिक* बदलाव कभी कभी इतना *जहरीला* हो सकता है कि आपकी *जान* भी ले ले;

*महामारी* के अलावा भी बहुत कुछ *दुनिया* में हो रहा है, उन पर *ध्यान* दीजिए;

*ध्यान-साधना* से *साधक* के चारों तरफ  एक *प्रोटेक्टिव Aura* बन जाता है, जो *बाहर* की *नकारात्मक उर्जा* को उसके भीतर *प्रवेश* नहीं करने देता है, 
अभी पूरी *दुनिया की उर्जा* *नाकारात्मक*  हो चुकी  है.......

ऐसे में आप कभी भी इस *ब्लैक-होल* में  गिर सकते हैं....ध्यान की *नाव* में बैठ कर हीं आप इस *झंझावात* से बच सकते हैं।

*शास्त्रों* का *अध्ययन* कीजिए, 
*साधू-संगत* कीजिए, और *साधना* कीजिए, *विद्वानों* से सीखें

*आहार* का भी *विशेष* ध्यान रखिए, *स्वच्छ* *जल* पीए,

*अंतिम बात:*
*धीरज* रखिए... *जल्द*  ही सब कुछ *बदल* जाएगा.......

जब  तक *मौत* आ ही न जाए, तब तक उससे *डरने* की कोई ज़रूरत नहीं है और जो *अपरिहार्य* है उससे *डरने* का कोई *अर्थ* भी नहीं  है, 

*डर* एक  प्रकार की *मूढ़ता* है, अगर किसी *महामारी* से अभी नहीं भी मरे तो भी एक न एक दिन मरना ही होगा, और वो एक दिन कोई भी  दिन हो सकता है, इसलिए *विद्वानों* की तरह *जीयें*, *भीड़* की तरह  नहीं!!"

                    -:  *ओशो*  :-

भगत (भक्त )

(((((((((( पुरूषार्थ करो ))))))))))
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एक भगतड़ा था सब देवी देवताओं को मानता था और आशा करता था...
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मुझे कोई मुसीबत पड़ेगी तब देवी देवता मेरी सहायता करेंगे।
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शरीर से हट्टाकट्टा, मजबूत था।
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बैलगाड़ी चलाने का धन्धा करता था।
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एक दिन उसकी बैलगाड़ी कीचड़ में फँस गई।
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वह भगतड़ा बैलगाड़ी पर बैठा-बैठा एक-एक देव को पुकारता है कि-
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हे देव ! मुझे मदद करो। मेरी नैया पार करो। मैं दीन हीन हूँ। मैं निर्बल हूँ।
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मेरा जगत में कोई नहीं। मैं इतने वर्षों
में तुम्हारी सेवा करता हूँ...
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फूल चढ़ाता हूँ... स्तुति भजन गाता हूँ।
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इसलिए गाता था कि ऐसे मौके पर तुम मेरी सहायता करो।
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इस प्रकार भगतड़ा एक-एक देव को गिड़गिड़ाता रहा।
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अन्धेरा उतर रहा था। निर्जन और सन्नाटे के स्थान में कोई चारा न देखकर आखिर उसने हनुमान जी को बुलाया।
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बुलाता रहा.... बुलाता रहा....। बुलाते-बुलाते अनजाने में चित्त शान्त हुआ।
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संकल्प सिद्ध हुआ। हनुमान जी प्रकट हुए।
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हनुमान जी को देखकर बड़ा खुश हुआ।
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और सब देवों को बुलाया लेकिन किसी ने सहायता नहीं की।
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आप ही मेरे इष्टदेव हैं। अब मैं आपकी ही पूजा करूँगा।
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हनुमान जी ने पूछाः क्यों बुलाया है ?
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भगतड़े ने कहाः हे प्रभु ! मेरी बैलगाड़ी कीचड़ में फँसी है। आप निकलवा दो।
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पुरुषार्थमूर्ति हनुमान जी ने कहाः हे दुर्बुद्धि !
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तेरे अन्दर अथाह सामर्थ्य है, अथाह बल है। नीचे उतर। जरा पुरुषार्थ कर।
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दुर्बल विचारों से अपनी शक्तियों का नाश करने वाले दुर्बुद्धि !
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हिम्मत कर नहीं तो फिर गदा मारूँगा।
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निदान, वह हट्टाकट्टा तो था ही। लगाया जोर पहिए को।
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गाड़ी कीचड़ से निकालकर बाहर कर दी।
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हनुमान जी ने कहाः यह बैलगाड़ी तो क्या, तू पुरुषार्थ करे तो....
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जन्मों-जन्मों से फँसी हुई तेरी बुद्धिरूपी बैलगाड़ी संसार के कीचड़ से निकाल कर परम तत्त्व का साक्षात्कार भी कर सकता है,
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परम तत्त्व में स्थिर भी हो सकता है।

सुंदर पंक्तियां

Some beautiful lines 
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 "कुछ अरमान उन बारीश कि बुंदों कि तरह होते है,जिनको छुने कि ख्वाहिश में,हथेलिया तो गिली होजाती ,पर हाथ हमेशा खाली रह जाते है।"

"ज़िंदगी बड़ी अजीब होती है |
कभी हार कभी जीत होती है |
तमन्ना रखो समंदर की गहराई छूने की |
किनारों पे तो बस ज़िंदगी की शुरुवात होती है |"

इंसान की तरह बोलना न आये तो जानवर की तरह मौन रहना अच्छा है ..

जिस तरह बरसात आने से पहले छतरी खोलने का कोई अर्थ नही , उसी तरह काल्पनिक मुशिबतों के लिए पहले से ही चिंता करने का कोई मतलब नही ..

अन्त मे चार पंक्तियाँ दिल की गहराई से -

उसकी धाक ...., एक दो पर नहीं , सैकड़ो पे थी . और गिनती भी उसकी शहर के बड़े बड़ो में थी. दफ़न .... केवल छह फिट के गड्डे में कर दिया उसको , जबकि ...... जमीन उसके नाम तो कई एकड़ो में थी ..

आपका दिन मंगलमय हो

                               + धर्मेन्द्र +

सम्यक श्रम रजनीश

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*सम्यक श्रम*

सम्यक श्रम भी मनुष्य की चेतना और ऊर्जा को जगाने के लिए अनिवार्य हिस्सा है।

अब्राहम लिंकन एक दिन सुबह-सुबह अपने घर बैठा अपने जूतों पर पॉलिश करता था। उसका एक मित्र आया और उस मित्र ने कहा: लिंकन, यह क्या करते हो? तुम खुद ही अपने जूतों पर पॉलिश करते हो?

लिंकन ने कहा: तुमने मुझे हैरानी में डाल दिया। तुम क्या दूसरों के जूतों पर पॉलिश करते हो? मैं अपने ही जूतों पर पॉलिश कर रहा हूं। तुम क्या दूसरों के जूतों पर पॉलिश करते हो?

उसने कहा कि नहीं-नहीं, मैं तो दूसरों से करवाता हूं।

लिंकन ने कहा: दूसरों के जूतों पर पॉलिश करने से भी बुरी बात यह है कि तुम किसी आदमी से जूते पर पॉलिश करवाओ।

इसका मतलब क्या है? इसका मतलब यह है कि जीवन से सीधे संबंध हम खो रहे हैं। जीवन के साथ हमारे सीधे संबंध श्रम के संबंध हैं। प्रकृति के साथ हमारे सीधे संबंध हमारे श्रम के संबंध हैं।

कनफ्यूशियस के जमाने में--कोई तीन हजार वर्ष पहले--कनफ्यूशियस एक गांव में घूमने गया था। उसने एक बगीचे में एक माली को देखा। एक बूढ़ा माली कुएं से पानी खींच रहा है। बूढ़े माली का कुएं से पानी खींचना बड़ा कष्टपूर्ण है। वह बुड्ढा लगा हुआ है पानी को...जहां बैल लगाए जाते हैं, वहां बुड्ढा लगा हुआ है और उसका जवान लड़का लगा हुआ है। वे दोनों पानी खींच रहे हैं! वह बूढ़ा बहुत बूढ़ा है।

कनफ्यूशियस को खयाल हुआ कि क्या इस बूढ़े को अब तक पता नहीं है कि बैलों या घोड़ों से पानी खींचा जाने लगा है। यह खुद ही लगा हुआ खींच रहा है। यह कहां के पुराने ढंग को अख्तियार किए हुए है।

तो वह बूढ़े आदमी के पास कनफ्यूशियस गया और उससे बोला कि मेरे मित्र! क्या तुम्हें पता नहीं है, नई ईजाद हो गई है। लोग घोड़े और बैलों को जोत कर पानी खींचते हैं, तुम खुद लगे हुए हो?

उस बूढ़े ने कहा: धीरे बोलो, धीरे बोलो! क्योंकि मुझे तो कुछ खतरा नहीं है, लेकिन मेरा जवान लड़का न सुन ले।

कनफ्यूशियस ने कहा: तुम्हारा मतलब?

उस बूढ़े ने कहा: मुझे सब ईजाद पता है, लेकिन सब ईजाद आदमी को श्रम से दूर करने वाली है। और मैं नहीं चाहता कि मेरा लड़का श्रम से दूर हो जाए। क्योंकि जिस दिन वह श्रम से दूर होगा, उसी दिन जीवन से भी दूर हो जाएगा।

जीवन और श्रम समानार्थक हैं। जीवन और श्रम एक ही अर्थ रखते हैं। लेकिन धीरे-धीरे हम उनको धन्यभागी कहने लगे हैं, जिनको श्रम नहीं करना पड़ता है और उनको अभागे कहने लगे हैं, जिनको श्रम करना पड़ता है! और यह हुआ भी। एक अर्थ में बहुत से लोगों ने श्रम करना छोड़ दिया, तो कुछ लोगों पर बहुत श्रम पड़ गया। बहुत श्रम प्राण ले लेता है, कम श्रम भी प्राण ले लेता है।

इसलिए मैंने कहा: सम्यक श्रम। श्रम का ठीक-ठीक विभाजन। हर आदमी के हाथ में श्रम होना चाहिए। और जितनी तीव्रता से और जितने आनंद से और जितने अहोभाव से कोई आदमी श्रम के जीवन में प्रवृत्त होगा, उतना ही पाएगा कि उसकी जीवन-धारा मस्तिष्क से उतर कर नाभि के करीब आनी शुरू हो गई है। क्योंकि श्रम के लिए मस्तिष्क की कोई जरूरत नहीं होती। श्रम के लिए हृदय की भी कोई जरूरत नहीं होती। श्रम तो सीधा नाभि से ही ऊर्जा को ग्रहण करता है और निकलता है।

थोड़ा श्रम, ठीक आहार के साथ-साथ थोड़ा श्रम अत्यंत आवश्यक है। और यह इसलिए नहीं कि यह किसी और के हित में है कि आप गरीब की सेवा करें तो यह गरीब के हित में है, कि आप जाकर गांव में खेती-बाड़ी करें, तो यह किसानों के हित में है, कि आप कोई श्रम करेंगे, तो बहुत बड़ी समाज-सेवा कर रहे हैं। 

झूठी हैं ये बातें। यह आपके हित में है और किसी के हित में नहीं है। किसी और के हित का इससे कोई संबंध नहीं है। किसी और का हित इससे हो जाए, वह बिलकुल दूसरी बात है, लेकिन यह आपके हित में है।

- ओशो, 
अंतर्यात्रा (ध्‍यान शिविर) प्रवचन-3

कीमत धर्म ग्रन्थों की

एक बूढ़ी माता मन्दिर के सामने भीख माँगती थी। एक संत ने पूछा - आपका बेटा लायक है, फिर यहाँ क्यों?

बूढ़ी माता बोली - बाबा, मेरे पति का देहान्त हो गया है। मेरा पुत्र परदेस नौकरी के लिए चला गया। जाते समय मेरे खर्चे के लिए कुछ रुपए देकर गया था, वे खर्च हो गये इसीलिए भीख माँग रही हूँ।

सन्त ने पूछा - क्या तेरा बेटा तुझे कुछ नहीं भेजता?

बूढ़ी माता बोलीं - मेरा बेटा हर महीने एक रंग-बिरंगा कागज भेजता है जिसे मैं दीवार पर चिपका देती हूँ।

सन्त ने उसके घर जाकर देखा कि दीवार पर 60 bank drafts चिपकाकर रखे थे। प्रत्येक draft ₹50,000 राशि का था। पढ़ी-लिखी न होने के कारण वह नहीं जानती थी कि उसके पास कितनी सम्पत्ति है। संत ने उसे draft का मूल्य समझाया।

उन माता की ही भाँति हमारी स्थिति भी है। *हमारे पास धर्मग्रन्थ तो हैं पर माथे से लगाकर अपने घर में सुसज्जित करके रखते हैं जबकि हम उनका वास्तविक लाभ तभी उठा पाएगें जब हम उनका अध्ययन, चिन्तन, मनन करके उन्हें अपने जीवन में उतारेगें*।

*हम  हमारे ग्रन्थों की वैज्ञानिकता को समझें,  हमारे त्यौहारो की वैज्ञानिकता को समझें और अनुसरण करें*  😌😌😌🙏🏻🙏🏻

महाभारत से सीख

*यदि "महाभारत" को पढ़ने का समय न हो तो भी इसके नौ सार- सूत्र हमारे जीवन में उपयोगी सिद्ध हो सकते है :-*

*1.संतानों की गलत माँग और हठ पर समय रहते अंकुश नहीं लगाया गया, तो अंत में आप असहाय हो जायेंगे-*  *कौरव*

*2.आप भले ही कितने बलवान हो लेकिन अधर्म के साथ हो तो, आपकी विद्या, अस्त्र-शस्त्र शक्ति और वरदान सब निष्फल हो जायेगा -*    *कर्ण*

*3.संतानों को इतना महत्वाकांक्षी मत बना दो कि विद्या का दुरुपयोग कर स्वयंनाश कर सर्वनाश को आमंत्रित करे-*
*अश्वत्थामा*

*4.कभी किसी को ऐसा वचन मत दो  कि आपको अधर्मियों के आगे समर्पण करना पड़े -*    *भीष्म पितामह*

*5.संपत्ति, शक्ति व सत्ता का दुरुपयोग और दुराचारियों का साथ अंत में स्वयंनाश का दर्शन कराता है -*    *दुर्योधन*

*6.अंध व्यक्ति- अर्थात मुद्रा, मदिरा, अज्ञान, मोह और काम ( मृदुला) अंध व्यक्ति के हाथ में सत्ता भी विनाश की ओर ले जाती है -*    *धृतराष्ट्र*

*7.यदि व्यक्ति के पास विद्या, विवेक से बँधी हो तो विजय अवश्य मिलती है -*
*अर्जुन*

*8.हर कार्य में छल, कपट, व प्रपंच रच कर आप हमेशा सफल नहीं हो सकते -*
*शकुनि*

*9.यदि आप नीति, धर्म, व कर्म का सफलता पूर्वक पालन करेंगे, तो विश्व की कोई भी शक्ति आपको पराजित नहीं कर सकती -*   *युधिष्ठिर*

इन नौ सूत्रों से सबक लिया जाता है  तो जीवन मे सुख, शांति, उन्नति, समृध्दि सब कुछ  संभव हो जाता है।*

Sunday, September 27, 2020

मालिक और भक्त

अवश्य पढ़ें एक सुंदर कहानी :-

एक गाय घास चरने के लिए एक जंगल में चली गई। शाम ढलने के करीब थी। उसने देखा कि एक बाघ उसकी तरफ दबे पांव बढ़ रहा है। 
वह डर के मारे इधर-उधर भागने लगी। वह बाघ भी उसके पीछे दौड़ने लगा। दौड़ते हुए गाय को सामने एक तालाब दिखाई दिया। घबराई हुई गाय उस तालाब के अंदर घुस गई। 
वह बाघ भी उसका पीछा करते हुए तालाब के अंदर घुस गया। तब उन्होंने देखा कि वह तालाब बहुत गहरा नहीं था। उसमें पानी कम था और वह कीचड़ से भरा हुआ था। 
उन दोनों के बीच की दूरी काफी कम  थी। लेकिन अब वह कुछ नहीं कर पा रहे थे। वह गाय उस कीचड़ के अंदर धीरे-धीरे धंसने लगी। वह बाघ भी उसके पास होते हुए भी उसे पकड़ नहीं सका। वह भी धीरे-धीरे कीचड़ के अंदर धंसने लगा। दोनों ही करीब करीब गले तक उस कीचड़ के अंदर फंस गए। 
दोनों हिल भी नहीं पा रहे थे। गाय के करीब होने के बावजूद वह बाघ उसे पकड़ नहीं पा रहा था। 
थोड़ी देर बाद गाय ने उस बाघ से पूछा, क्या तुम्हारा कोई गुरु या मालिक है? 
बाघ ने गुर्राते हुए कहा, मैं तो जंगल का राजा हूं। मेरा कोई मालिक नहीं। मैं खुद ही जंगल का मालिक हूं।
 गाय ने कहा, लेकिन तुम्हारी उस शक्ति का यहां पर क्या उपयोग है? 
उस बाघ ने कहा, तुम भी तो फंस गई हो और मरने के करीब हो। तुम्हारी भी तो हालत मेरे जैसी ही  है।

गाय ने मुस्कुराते हुए कहा,.... बिलकुल नहीं। मेरा मालिक जब शाम को घर आएगा और मुझे वहां पर नहीं पाएगा तो वह ढूंढते हुए यहां जरूर आएगा और मुझे इस कीचड़ से निकाल कर अपने घर ले जाएगा। तुम्हें कौन ले जाएगा? 

थोड़ी ही देर में सच में ही एक आदमी वहां पर आया और गाय को कीचड़ से निकालकर अपने घर ले गया। 
जाते समय गाय और उसका मालिक दोनों एक दूसरे की तरफ कृतज्ञता पूर्वक देख रहे थे। वे चाहते हुए भी उस बाघ को कीचड़ से नहीं निकाल सकते थे, क्योंकि उनकी जान के लिए वह खतरा था।

गाय ----समर्पित ह्रदय का प्रतीक है।
बाघ ----अहंकारी मन है।
 और 
मालिक---- ईश्वर का प्रतीक है।
कीचड़---- यह संसार है।
 और
यह संघर्ष---- अस्तित्व की लड़ाई है।

किसी पर निर्भर नहीं होना अच्छी बात है, लेकिन मैं ही सब कुछ हूं, मुझे किसी के सहयोग की आवश्यकता नहीं है, यही अहंकार है, और यहीं से विनाश का बीजारोपण हो जाता है।
   
  ईश्वर से बड़ा इस दुनिया में सच्चा हितैषी कोई नहीं होता, क्यौंकि वही अनेक रूपों में हमारी रक्षा करता है

जय श्री कृष्ण

🙏🙏🙏🙏🙏🙏

Saturday, September 26, 2020

Body parts

1. The *STOMACH* is injured when you do not have breakfast in the morning.

2. The *KIDNEYS* are injured when you do not even drink 10 glasses of water in 24 hours.

3. The *GALLBLADDER* is injured when you do not even sleep until 11 o'clock and do not wake up to the sunrise.

4. The *SMALL INTESTINE* is injured when you eat cold and stale food.

5. The *LARGE INTESTINES* are injured when you eat more fried and spicy food.

6. The *LUNGS* are injured when you breathe in smoke and stay in polluted environment of cigarettes.

7. The *LIVER* is injured when you eat heavy fried food, junk, and fast food.

8. The *HEART* is injured when you eat your meal with more salt and cholesterol.

9. The *PANCREAS* is injured when you eat sweet things because they are tasty and freely available.

10.  The *Eyes* are injured when you work in the light of mobile phone and computer screen in the dark.

11. The *Brain* is injured when you start thinking negative thoughts.

12. The *SOUL* gets injured when you don't have family and friends to care and share with you in life their love, affection, happiness, sorrow and joy. 

*All these parts are NOT available in the market*. So take good care and keep your body parts healthy.💧

Friday, September 18, 2020

धर्म

💥 *धन और धर्म में कौन महान!*
*इसका जवाब बहुत सुंदर कविता के रूप में  है, "धन की रक्षा करनी पड़ती है" धर्म हमारी रक्षा करता है।*
*धन के लिए पाप करना पड़ता है,*
      *धर्म से पाप का त्याग होता है।*
*धन मित्रों को भी दुश्मन बना देता है,*
     *धर्म दुश्मनों को भी मित्र बना देता है।* 
*धन रहते हुए भी व्यक्ति दुःखी है,*
      *धर्म से व्यक्ति दुःख में भी सुखी है।*
*धन इच्छा को बढ़ाता है,*
      *धर्म इच्छाओं को घटाता है।*
*धन में लाभ हानि चलती रहती है,*
      *धर्म में फायदा ही फायदा है।*
*धन चार गति में भटकाता है,*
      *धर्म चार गतियों से पार कराता है।*
*धन से रोग बढ़ता है,*
      *धर्म से जीवन स्वस्थ बनता है।*
*धन अशाश्वत है,*
      *धर्म शाश्वत है।*
*धन का साथ इसी भव तक है,*
      *धर्म परभव में भी साथ रहता है।*
*जो सच्चे मन से अपनाता है धर्म,*
*उसके निरंतर कटते रहते है कर्म'*                         *इसलिए सच्चे धर्म को गहराई से समझना चाहिए। संसार मे हर कार्य हम सोच समझकर करते है, बस धर्म ही एक ऐसी वस्तु है जो हम बिना सोचे समझे सिर्फ करते है। धर्म तो समझकर जीवन मे उतारने की, जीने - मरने की कला है, जो हमें अनंत भव भ्रमण के चक्कर से बचाता है। अंधश्रद्धा से नहीं, कुल परम्परा से नहीं, किसी भी आग्रहों के बिना, सच्चे धर्म को समझकर मुक्ति की ओर बढ़े व अपने मनुष्य भव को सफल बनाये। 💎 जय प्रभु !!*🙏

स्वयं की ऊर्जावान रखें

स्वयम को सदा ऊर्जावान व् सकारात्मक रखें ।

theory of frequency ...!

👤  **अक्सर जब आपके साथ कोई घटना होती है तो हमें यही कहा जाता है कि तुम्हारे कर्म ही ऐसे है या फिर , तुम्हारे ग्रह अभी ऐसे थे जिसके कारण यह सब घटित हुआ ....! बात सही भी है व्यक्ति हमेशा अपने ग्रहों से प्रेरित रहता है , चाहे ज्ञानी या अज्ञानी , हर व्यक्ति अपने ग्रहों से हर जगह प्रभावित रहता है लेकिन ग्रह और व्यक्ति के बीच में एक ऐसी चीज़ है जिसे बदला जाए तो घटनायें बदली जा सकती है .....! इसे आप ऐसे समझें ... आपकी आँखों  👀की रोशनी कमज़ोर हो गयी है , अब आपको सबकुछ साफ़ नहीं दिखता लेकिन अगर आप नम्बर का चश्मा 🤓use करना शुरू करे तो आप वापस चीज़ों को साफ़ देख सकेंगे , .... सही कहे तो frequency इस चश्मे की तरह ही काम करके चीज़ों को बदल देती है ....! 

📃 **फ़्रीक्वन्सी को समझने के लिए हमें meta physics के सूत्रों को जानना पड़ता है लेकिन विनय विराट ••• theory of success में इसे हम बड़ी आसानी से समझने की कोशिश कर रहे है कि इस सूत्र का लाभ हर किसी को मिल सके ...! Frequency दो तरह की होती है एक higher और एक lower .., जब आप ख़ुद को अभाव में महसूस करते है , आपको दूसरे ग़लत लगते है , आपको उनसे शिकायत है कि वो ग़लत कर रहे है , आपका मन बिलकुल नहीं लग रहा , आप उदास है , आपको अपने जीवन के प्रति कोई उत्साह नहीं है , आपको लगता है कि लोग बहुत स्वार्थी हैं तो ये सब फ़ीलिंग यह शो करती है कि आप low frequency पर है , अब चाहे आपके ग्रह अच्छे भी हो लेकिन वो सुप्त हो जाएँगे और जो नेगेटिव ग्रह है वो active होकर आपको बुरी घटनायें देंगे .....!! 

😇 **दूसरी तरफ़ जब आपको जीवन के प्रति बहुत ज़्यादा उत्साह है , आपको लगता है कि आपके परिवार वाले , आपके मित्र , आपके आस पास सब लोग बहुत प्यारे और सहयोगी हैं , आप हमेशा ख़ुद को लकी फ़ील करते है , आपके अंदर हर व्यक्ति के लिए प्रशंसा की भावना है , आपको लगता है कि भगवान ने आपको कितना ज़्यादा दिया है , आपको हर तरफ़ समृद्धि की फ़ीलिंग ही नज़र आती है ..., तो यह फ़्रीक्वन्सी higher फ़्रीक्वन्सी है ....! जब आप हाइअर फ़्रीक्वन्सी पर होते हो तो आपके सारे शुभ ग्रह active होकर आपको अच्छी घटनायेंदेते है इसलिए जो व्यक्ति फ़्रीक्वन्सी को higher  रखना सीख जाए उस व्यक्ति का जीवन सुखी और मस्ती से भरा रहता है .......!! 

👉🏻 **traditional प्रवचन में जब आप सुनते हो कि कोई तुम्हारे साथ नहीं चलेगा , मृत्यु के समय तुम्हें अकेले ही  जाना पड़ेगा , दुनिया अपने स्वार्थ से भरी पड़ी है , यहाँ कोई किसी का नहीं है सब काम के रिश्ते रखते हैं आदि .... तो यक़ीन कीजिए ऐसी बातें आपको low फ़्रीक्वन्सी पर लेकर चली जाती है जहाँ आपके साथ नेगेटिव घटनायें होगी , अगर आप देखे कि कोई सन्यासी जो संसार को आसार मानता है और अपने प्रवचन में बार बार नेगेटिव चीज़ कहता है तो उसे या तो acidity या अनिद्रा की समस्या शुरू होगी , इसका कारण है कि जब आप बार बार इस संसार को नेगेटिव कहते है तो आपका शनि ग्रह active हो जाता है और वही इस समस्या का कारक ग्रह है ......! 

👉🏻🌍 *ये दुनिया वाक़ई बहुत प्यारी है , अक्सर लोग सोचते है कि मोक्ष के बाद आनंद है और मोक्ष तभी होगा जब आपको अपनी वर्तमान लाइफ़ waste लगेगी पर वैसा नहीं है , जब आपको इसी पल अपना जीवन बहुत amazing लगे यक़ीन कीजिए तभी आपकी आध्यात्मिक यात्रा शुरू हुई है ...! वास्तव में जो व्यक्ति हमेशा higher फ़्रीक्वन्सी पर रहता है वो पुण्य का बंध ही करता है , उसकी लेश्या मात्र से लोगों के दुःख दूर हो जाते हैं , उसके एक भाव से किसी के जीवन में आ रही मुश्किलें दूर हो जाती है ,..... मित्रों इसलिए फ़्रीक्वन्सी के इस नियम को जाने और ख़ुद को हमेशा एक higher frequency पर रखे जहाँ आपको अपना जीवन बहुत ही superb लगे और आप हर पल को enjoy करे .....!!

धन्यवाद 🙏🏻

थायराइड

*"*थायराइड की अचूक रामबाण औषधि*

थायराइड पीड़ित रोगी को अपनी
जीवन शैली बदलना पड़ेगा
आहार विहार बदले योग प्राणायाम को जीवन का अंग
बना लेना चाहिए।
*"*सिंघासन प्राणायाम जरूर*
*"*ही करना चाहिए*
औषधि
*"*कांचनार गुग्गुल धूतपापेशवर*
*"*आरोग्य वर्धिनी बटी धूतपापेशवर*
*"*कैशोर गुग्गुल धूतपापेशवर*
*"*लीव ५२डीएस टैबलेट*
दो दो गोलियां सुबह सायं गर्म पानी से नियमित रूप से सेवन करें
यदि वजन बढ़ रहा है तो
*"*मेदोहर गुगुल बटी* धूतपापेशवर ३--३गोलीयां सुबह सायं गर्म पानी से नियमित रूप से सेवन करें
छः महीने तक नियमित रूप से औषधि सेवन करें।
*"*डा श्याम कुमार गुप्ता*
*"*संस्थापक निदेशक*
*"*धनवंतरि आरोग्य संस्थान*
*"*आयुर्वेद शोध अनुसंधान शाला*
कनाटप्लेस चकराता रोड देहरादून उत्तराखंड
9358192731
**************************