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Tuesday, October 5, 2021

समस्या और परेशानी

🐪🐪🐪🐪 सौ  ऊंट 🐪🐪🐪🐪

एक आदमी  राजस्थान  के  किसी  शहर  में  रहता  था . वह  ग्रेजुएट  था  और  एक  प्राइवेट  कंपनी  में  जॉब  करता  था . 
पर वो  अपनी  ज़िन्दगी  से  खुश  नहीं  था , हर  समय  वो  किसी  न  किसी  समस्या  से  परेशान  रहता  था  और  उसी  के बारे  में  सोचता  रहता  था .

एक बार  शहर  से  कुछ  दूरी  पर  एक  एक महात्मा  का  काफिला  रुका  हुआ  था . शहर  में  चारों  और  उन्ही की चर्चा  थी , 
बहुत  से  लोग  अपनी  समस्याएं  लेकर  उनके  पास  पहुँचने  लगे ,
 उस आदमी  को  भी  इस  बारे  में  पता चला, और  उसने  भी  महात्मा  के  दर्शन  करने  का  निश्चय  किया .
👀
छुट्टी के दिन  सुबह -सुबह ही उनके  काफिले  तक  पहुंचा .
 वहां  सैकड़ों  लोगों  की  भीड़  जुटी  हुई  थी , बहुत इंतज़ार  के  बाद उसका  का  नंबर  आया .

वह  बाबा  से  बोला  ,” बाबा , मैं  अपने  जीवन  से  बहुत  दुखी  हूँ ,
 हर  समय  समस्याएं  मुझे  घेरी  रहती  हैं , कभी ऑफिस  की  टेंशन  रहती  है , 
तो  कभी  घर  पर  अनबन  हो  जाती  है , और  कभी  अपने  सेहत  को  लेकर  परेशान रहता  हूँ ….
 बाबा  कोई  ऐसा  उपाय  बताइये  कि  मेरे  जीवन  से  सभी  समस्याएं  ख़त्म  हो  जाएं  और  मैं  चैन  से  जी सकूँ ?
😇
बाबा  मुस्कुराये  और  बोले , “ पुत्र  , आज  बहुत देर  हो  गयी  है  मैं  तुम्हारे  प्रश्न  का  उत्तर  कल  सुबह दूंगा …
लेकिन क्या  तुम  मेरा  एक  छोटा  सा  काम  करोगे …?”

“ज़रूर  करूँगा ..”, वो आदमी उत्साह  के  साथ  बोला .
“देखो  बेटा , हमारे  काफिले  में  सौ ऊंट  🐪 हैं  , 
और  इनकी  देखभाल  करने  वाला  आज  बीमार  पड़  गया  है , मैं  चाहता हूँ  कि  आज  रात  तुम  इनका  खयाल  रखो …
और  जब  सौ  के  सौ  ऊंट 🐪  बैठ  जाएं  तो  तुम   भी  सो  जाना …”,
 ऐसा कहते  हुए   महात्मा👳  अपने  तम्बू  में  चले  गए ..
😴
अगली  सुबह  महात्मा उस आदमी  से  मिले  और  पुछा , “ कहो  बेटा , नींद  अच्छी  आई .”

“कहाँ  बाबा , मैं  तो  एक  पल  भी  नहीं  सो  पाया , मैंने  बहुत  कोशिश  की  पर  मैं  सभी  ऊंटों🐪  को  नहीं  बैठा  पाया , 
कोई  न  कोई  ऊंट 🐪 खड़ा  हो  ही  जाता …!!!”,  वो  दुखी  होते  हुए  बोला .”
😒
“ मैं  जानता  था  यही  होगा …
आज  तक  कभी  ऐसा  नहीं  हुआ  है  कि  ये  सारे  ऊंट  एक  साथ  बैठ  जाएं …!!!”, 
“ बाबा  बोले .
😡
आदमी नाराज़गी  के  स्वर  में  बोला , “ तो  फिर  आपने  मुझे  ऐसा  करने  को  क्यों  कहा ”
😠
बाबा बोले  , “ बेटा , कल  रात  तुमने  क्या  अनुभव  किया , 
यही  ना  कि  चाहे  कितनी  भी  कोशिश  कर  लो  सारे  ऊंट 🐪एक  साथ  नहीं  बैठ  सकते … 
तुम  एक  को  बैठाओगे  तो  कहीं  और  कोई  दूसरा  खड़ा  हो  जाएगा  
😯
इसी  तरह  तुम एक  समस्या  का  समाधान  करोगे  तो  किसी  कारणवश  दूसरी खड़ी हो  जाएगी .. 
😨
पुत्र  जब  तक  जीवन  है  ये समस्याएं  तो  बनी  ही  रहती  हैं … कभी  कम  तो  कभी  ज्यादा ….”
😱
“तो  हमें  क्या  करना चाहिए  ?” , आदमी  ने  जिज्ञासावश  पुछा .
😳
“इन  समस्याओं  के  बावजूद  जीवन  का  आनंद  लेना  सीखो … 
कल  रात  क्या  हुआ   , कई  ऊंट 🐪  रात होते -होते  खुद ही  बैठ  गए  , 
कई  तुमने  अपने  प्रयास  से  बैठा  दिए , पर  बहुत  से  ऊंट 🐪 तुम्हारे  प्रयास  के  बाद  भी  नहीं बैठे …
और जब  बाद  में  तुमने  देखा  तो  पाया  कि तुम्हारे  जाने  के  बाद उनमे से कुछ खुद ही  बैठ  गए …. 
कुछ  समझे …. 
😊
"समस्याएं  भी  ऐसी  ही  होती  हैं , कुछ  तो  अपने आप ही ख़त्म  हो  जाती  हैं ,
  कुछ  को  तुम  अपने  प्रयास  से  हल  कर लेते  हो …
और  कुछ  तुम्हारे  बहुत  कोशिश  करने  पर   भी  हल  नहीं  होतीं ,
 ऐसी  समस्याओं  को   समय  पर  छोड़  दो … 
😶
उचित  समय  पर  वे खुद  ही  ख़त्म  हो  जाती  हैं ….
 और  जैसा  कि मैंने  पहले  कहा … जीवन  है
  तो  कुछ समस्याएं रहेंगी  ही  रहेंगी ….
 पर  इसका  ये  मतलब  नहीं  की  तुम  दिन  रात  उन्ही  के  बारे  में  सोचते  रहो …
😱
 ऐसा होता तो ऊंटों 🐪की देखभाल करने वाला कभी सो नहीं पाता…. 
समस्याओं को  एक  तरफ  रखो  और  जीवन  का  आनंद  लो…
😊
 चैन की नींद सो …
😴
 जब  उनका  समय  आएगा  वो  खुद  ही  हल  हो  जाएँगी"... 
😊

  
         बिंदास मुस्कुराओ 😊क्या ग़म हे,..

         ज़िन्दगी में टेंशन😁 किसको कम हे..

          अच्छा 😍या बुरा 👹तो केवल भ्रम हे..

   जिन्दगी का नाम ही कभी ख़ुशी😊 कभी गम 😒हैं ।

Saturday, August 28, 2021

कृष्णा के अनुकूल

जीवन में तृष्णाएं इसलिए आगे आकर खड़ी हैं क्योंकि जीवन का लक्ष्य अभी श्रीकृष्ण से विपरीत है। अपनी पुष्टि करना है अपने अभिमान की पुष्टि करना है अभी लौकिक भौतिक जागतिक ऐहिक ऐन्द्रिक सुखानुभूतियों के प्रयत्न हैं इसलिए तृष्णा आगे है कृष्ण पीछे खड़े हैं 

जिस दिन जीवन का परम लक्ष्य श्रीगोविन्द की शरणागति हो जाएगा भक्त सबकुछ करता है पर आगे श्रीठाकुरजी को रखता है। 

जिस क्षण सूर्य की तरफ दौड़े उस क्षण स्वतः परछाई पीछे हो जाती है सूर्य आगे आते ही परछाई पीछे हो जाता है दिया जलते ही अंधकार मिट जाता है।   माया का होना ही इसकी खबर है कि अभी राम आए नहीं है। दीप प्रज्ज्वलित होते ही अंधकार निवृत्त हो जाता है। 

ये सब तभी प्रभाव पड़ेगा। इसलिए ये सब प्रभाव को छुटाने कि कोशिश ही क्यों की जाय? डंडा लेकर अंधकार को नहीं भगा सकते। दिया जला दो अंधकार अपने आप भाग जाएगा। 

क्या छोड़ना है क्या पाना है ये छोड़ो वो छोड़ो ये पाओ इसे पहचानो इसे त्यागो इसे पकड़ो। इन सब बवालों में पड़ते क्यूँ हो? सीधी-सीधी सी बात है श्रीगोविन्द के चरणारविंद की विशुद्ध अनुरक्ति श्रीगुरुकृपा से हो जाय प्रेम द्वीप प्रज्ज्वलित हो जाए 

भागवत जी ज्ञान के दीप को प्रज्ज्वलित कर देती हैं  ये आध्यात्म का दिया है। जैसे ही आध्यात्म का दिया प्रकट होता है अज्ञान की स्वतः निवृत्ति हो जाती है। 

इसलिए कृष्ण कितने प्राप्त हैं ये प्रश्न नहीं है वो तो सतत् सुलभ हैं बड़ी बात ये है कि हमारे भीतर श्रीकृष्ण की अनुकूलता कितनी है? कृष्णानुकूलनम्।।

आनुकूल्यता ही श्रीकृष्ण प्रेम का सबसे बड़ा प्रमाण है। वो अनुकूलता कितनी है? 

।। परमाराध्य पूज्य श्रीमन्माध्वगौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।

Tuesday, June 15, 2021

सुख दुख

🍁🍁
*सुखी आदमी के जूते*👞👞

*एक व्यक्ति अपने गुरु के पास गया और बोला, गुरुदेव, दुख से छूटने का कोई उपाय बताइए। शिष्य ने थोड़े शब्दों में बहुत बड़ा प्रश्न किया था। दुखों की दुनिया में जीना लेकिन उसी से मुक्ति का उपाय भी ढूंढना! बहुत मुश्किल प्रश्न था।*

*गुरु ने कहा, एक काम करो, जो आदमी सबसे सुखी है, उसके पहने हुए जूते लेकर आओ। फिर मैं तुझे दुख से छूटने का उपाय बता दूंगा।*

*शिष्य चला गया। एक घर में जाकर पूछा, भाई, तुम तो बहुत सुखी लगते हो। अपने जूते सिर्फ आज के लिए मुझे दे दो।*

*उसने कहा, कमाल करते हो भाई! मेरा पड़ोसी इतना बदमाश है कि क्या कहूं? ऐसी स्थिति में मैं सुखी कैसे रह सकता हूं? मैं तो बहुत दुखी इंसान हूं।*

*वह दूसरे घर गया। दूसरा बोला, अब क्या कहूं भाई? सुख की तो बात ही मत करो। मैं तो पत्नी की वजह से बहुत परेशान हूं। ऐसी जिंदगी बिताने से तो अच्छा है कि कहीं जाकर साधु बन जाऊं। सुखी आदमी देखना चाहते हो तो किसी और घर जाओ।*

*वह तीसरे घर गया, चैथे घर गया। किसी की पत्नी के पास गया तो वह पति को क्रूर बताती, पति के पास गया तो वह पत्नी को दोषी कहता। पिता के पास गया तो वह पुत्र को बदमाश बताता। पुत्र के पास गया तो पिता की वजह से खुद को दुखी बताता। सैकड़ों-हजारों घरों के चक्कर लगा आया। सुखी आदमी के जूते मिलना तो दूर खुद के ही जूते घिस गए।*

*शाम को वह गुरु के पास आया और बोला, मैं तो घूमते-घूमते परेशान हो गया। न तो कोई सुखी मिला और न सुखी आदमी के जूते।*

*गुरु ने पूछा, लोग क्यों दुखी हैं? उन्हें किस बात का दुख है?*

*उसने कहा, किसी का पड़ोसी खराब है। कोई पत्नी से परेशान, कोई पति से दुखी तो कोई पुत्र से परेशान है। आज हर आदमी दूसरे आदमी के कारण दुख भोग रहा है।*

*गुरु ने बताया, सुख का सूत्र है - दूसरे की ओर नहीं, बल्कि अपनी ओर देखो। खुद में झांको। खुद की काबिलियत पर गौर करो। प्रतिस्पर्द्धा करनी है तो खुद से करो, दूसरों से नहीं। जीवन तुम्हारी यात्रा है। दूसरों को देखकर अपने रास्ते मत बदलो। खुद को सुनो, खुद को देखो। यही सुख का सूत्र है।*

*शिष्य बोला, महाराज, बात तो आपकी सत्य है लेकिन यही आप मुझे सुबह भी बता सकते थे। फिर इतनी परिक्रमा क्यों करवाई?*

*गुरु ने कहा, वत्स, सत्य दुष्पाच्य होता है। वह सीधा नहीं पचता। अगर यह बात मैं सुबह बता देता तो तू हर्गिज नहीं मानता। जब स्वयं अनुभव कर लिया, सबकी परिक्रमा कर ली, सबके चक्कर लगा लिए, तो बात समझ में आ गई। अब ये बात तुम पूरे जीवन में नहीं भूलोगे।*

*जीवन तुम्हारी यात्रा है। दूसरों को देखकर अपने रास्ते मत बदलो।*

      सदा खुश रहें ....😅

Wednesday, June 2, 2021

सुविचार



.... जो गुजर गया उसके बारे में मत सोचो और भविष्य के सपने मत देखो
केवल वर्तमान पे ध्यान केंद्रित करो ।
                   *–

.... आप पूरे ब्रह्माण्ड में कहीं भी ऐसे व्यक्ति को खोज लें जो आपको आपसे ज्यादा प्यार करता हो, आप पाएंगे कि जितना प्यार आप खुद से कर सकते हैं उतना कोई आपसे नहीं कर सकता।
                   *–

.... स्वास्थ्य सबसे बड़ा उपहार है, संतोष सबसे बड़ा धन और विश्वास सबसे अच्छा संबंध।
                  *–

.... हमें हमारे अलावा कोई और नहीं बचा सकता, हमें अपने रास्ते पे खुद चलना है।
                    *– 

.... तीन चीज़ें ज्यादा देर तक नहीं छुपी रह सकतीं – सूर्य, चन्द्रमा और सत्य
                   *– 

.... आपका मन ही सब कुछ है, आप जैसा सोचेंगे वैसा बन जायेंगे ।
                   *–

.... अपने शरीर को स्वस्थ रखना भी एक कर्तव्य है, अन्यथा आप अपनी मन और सोच को अच्छा और साफ़ नहीं रख पाएंगे ।
                   *–

.... हम अपनी सोच से ही निर्मित होते हैं, जैसा सोचते हैं वैसे ही बन जाते हैं। जब मन शुद्ध होता है तो खुशियाँ परछाई की तरह आपके साथ चलती हैं ।
                    *–

.... किसी परिवार को खुश, सुखी और स्वस्थ रखने के लिए सबसे जरुरी है - अनुशासन और मन पर नियंत्रण।
अगर कोई व्यक्ति अपने मन पर नियंत्रण कर ले तो उसे आत्मज्ञान का रास्ता मिल जाता है
                   *– 

.... क्रोध करना एक गर्म कोयले को दूसरे पे फैंकने के समान है जो पहले आपका ही हाथ जलाएगा।
                    *–

.... जिस तरह एक मोमबत्ती की लौ से हजारों मोमबत्तियों को जलाया जा सकता है फिर भी उसकी रौशनी कम नहीं होती उसी तरह एक दूसरे से खुशियाँ बांटने से कभी खुशियाँ कम नहीं होतीं ।
                   *–

.... इंसान के अंदर ही शांति का वास होता है, उसे बाहर ना तलाशें ।
                  *– 

.... आपको क्रोधित होने के लिए दंड नहीं दिया जायेगा, बल्कि आपका क्रोध खुद आपको दंड देगा ।
                  *– 

.... हजारों लड़ाइयाँ जितने से बेहतर है कि आप खुद को जीत लें, फिर वो जीत आपकी होगी जिसे कोई आपसे नहीं छीन सकता ना कोई स्वर्गदूत और ना कोई राक्षस ।
                  *–

.... जिस तरह एक मोमबत्ती बिना आग के खुद नहीं जल सकती उसी तरह एक इंसान बिना आध्यात्मिक जीवन के जीवित नहीं रह सकता ।
                 *– 

.... निष्क्रिय होना मृत्यु का एक छोटा रास्ता है, मेहनती होना अच्छे जीवन का रास्ता है, मूर्ख लोग निष्क्रिय होते हैं और बुद्धिमान लोग मेहनती ।
                   *– 

.... हम जो बोलते हैं अपने शब्दों को देखभाल के चुनना चाहिए कि सुनने वाले पे उसका क्या प्रभाव पड़ेगा,
अच्छा या बुरा ।
                  *–

.... आपको जो कुछ मिला है उस पर घमंड ना करो और ना ही दूसरों से ईर्ष्या करो, घमंड और ईर्ष्या करनेवाले लोगों को कभी मन की शांति नहीं मिलती ।
                   *–

.... अपनी स्वयं की क्षमता से काम करो, दूसरों निर्भर मत रहो ।
                *–

..... असल जीवन की सबसे बड़ी विफलता है हमारा असत्यवादी होना ।
                *–  

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

Saturday, May 22, 2021

वर्जित है मना है

🍂🍀 पृथ्वी पर न रखें🍀🍂

इन इक्कीस वस्तुओं को सीधे पृथ्वी पर रखना वर्जित होता है। ये वस्तुयें पृथ्वी की ऊर्जा को अव्यवस्थित करती हैं और उस स्थान को अशुभ बनाती हैं। 

ये वस्तुयें हैं -

(1) मोती 
(2) शुक्ति (सीपी)
(3) शालग्राम 
(4) शिवलिंग
(5) देवी मूर्ति
(6) शंख 
(7) दीपक
(8) यन्त्र 
(9) माणिक्य
(10) हीरा 
(11) यज्ञसूत्र (यज्ञोपवीत)
(12)  पुष्प (फूल)
(13) पुष्पमाला
(14) जपमाला 
(15) पुस्तक 
(16) तुलसीदल 
(17) कर्पूर 
(18) स्वर्ण
(19) गोरोचन 
(20)  चंदन 
(21) शालिग्राम का स्नान कराया अमृत जल ।

 इन सभी वस्तुओं को किसी आधार पर रख तभी उस पर इनको स्थापित कर पूजित किया जाता है। पृथ्वी पर अक्षत, आसन, काष्ठ या पात्र रख कर इनको उस पर रखते हैं-

मुक्तां शुक्तिं हरेरर्चां शिवलिंगं शिवां तथा ।
शंखं प्रदीपं यन्त्रं च माणिक्यं हीरकं तथा ।।

यज्ञसूत्रं  च पुष्पं च  पुस्तकं तुलसीदलम्  ।
जपमालां पुष्पमालां कर्पूरं च  सुवर्णकम् ।।

गोरोचनं  च चन्दनं  च  शालग्रामजलं तथा ।
एतान् वोढुमशक्ताहं क्लिष्टा च भगवन् शृणु।।

       अतएव इन इक्कीस वस्तुओं को सजगता पूर्वक किसी न किसी वस्तु के ऊपर रखना चाहिए। 

प्रायः दीपक को लोग अक्षतपुंज पर रखते हैं। 

पुस्तक को मेज पर रखते हैं। शालिग्राम और देवी की मूर्ति को पीठिका पर रखते हैं।

शंख को त्रिपादी पर रखते हैं। स्वर्ण को डिब्बी में रखते हैं।

फूल, फूलमाला को पुष्पपात्र में तथा यज्ञोपवीत को किसी पत्र पर रखते हैं।

   ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं वसुधायै नमः 

  साभार---आचार्य विनीत जी

Monday, April 19, 2021

प्रभु कृपा

तुलसीदास जी जब “रामचरितमानस” लिख रहे थे, तो उन्होंने एक चौपाई लिखी:

सिय राम मय सब जग जानी,
  करहु प्रणाम जोरी जुग पानी ।।

अर्थात –
पूरे संसार में श्री राम का निवास है, सबमें भगवान हैं और हमें उनको हाथ जोड़कर प्रणाम कर लेना चाहिए।

चौपाई लिखने के बाद तुलसीदास जी विश्राम करने अपने घर की ओर चल दिए। रास्ते में जाते हुए उन्हें एक लड़का मिला और बोला –

अरे महात्मा जी, इस रास्ते से मत जाइये आगे एक बैल गुस्से में लोगों को मारता हुआ घूम रहा है। और आपने तो लाल वस्त्र भी पहन रखे हैं तो आप इस रास्ते से बिल्कुल मत जाइये।

तुलसीदास जी ने सोचा – ये कल का बालक मुझे चला रहा है। मुझे पता है – सबमें राम का वास है। मैं उस बैल के हाथ जोड़ लूँगा और शान्ति से चला जाऊंगा।

लेकिन तुलसीदास जी जैसे ही आगे बढे तभी बिगड़े बैल ने उन्हें जोरदार टक्कर मारी और वो बुरी तरह गिर पड़े।

अब तुलसीदास जी घर जाने की बजाय सीधे उस जगह पहुंचे जहाँ वो रामचरित मानस लिख रहे थे। और उस चौपाई को फाड़ने लगे, तभी वहां हनुमान जी प्रकट हुए और बोले – श्रीमान ये आप क्या कर रहे हैं?

तुलसीदास जी उस समय बहुत गुस्से में थे, वो बोले – ये चौपाई बिल्कुल गलत है। ऐसा कहते हुए उन्होंने हनुमान जी को सारी बात बताई।

हनुमान जी मुस्कुराकर तुलसीदास जी से बोले – श्रीमान, ये चौपाई तो शत प्रतिशत सही है। आपने उस बैल में तो श्री राम को देखा लेकिन उस बच्चे में राम को नहीं देखा जो आपको बचाने आये थे। भगवान तो बालक के रूप में आपके पास पहले ही आये थे लेकिन आपने देखा ही नहीं।

ऐसा सुनते ही तुलसीदास जी ने हनुमान जी को गले से लगा लिया।

*घर पर रहे शायद यही राम जी की इच्छा हो* 
*जो प्रशासन ने कहा वो राम जी ने कहा हो* 

गंगा बड़ी, न गोदावरी, न तीर्थ बड़े प्रयाग।
सकल तीर्थ का पुण्य वहीं, जहाँ हदय राम का वास।।

Monday, February 1, 2021

चुभन

*बोध कथा*

*चुभन....!*

पुरानी साड़ियों के बदले बर्तनों के लिए मोल भाव करती एक सम्पन्न घर की महिला ने अंततः दो साड़ियों के बदले एक टब पसंद किया . "नहीं दीदी ! बदले में तीन साड़ियों से कम तो नही लूँगा ." बर्तन वाले ने टब को वापस अपने हाथ में लेते हुए कहा .

अरे भैया ! एक एक बार की पहनी हुई तो हैं.. ! बिल्कुल नये जैसी . एक टब के बदले में तो ये दो भी ज्यादा हैं , मैं तो फिर भी दे रही हूँ . नहीं नहीं , तीन से कम में तो नहीं हो पायेगा ." वह फिर बोला .

एक दूसरे को अपनी पसंद के सौदे पर मनाने की इस प्रक्रिया के दौरान गृह स्वामिनी को घर के खुले दरवाजे पर देखकर सहसा गली से गुजरती अर्द्ध विक्षिप्त महिला ने वहाँ आकर खाना माँगा...

आदतन हिकारत से उठी महिला की नजरें उस महिला के कपडों पर गयी.... अलग अलग कतरनों को गाँठ बाँध कर बनायी गयी उसकी साड़ी उसके युवा शरीर को ढँकने का असफल प्रयास कर रही थी....

एकबारगी उस महिला ने मुँह बिचकाया . पर सुबह सुबह का याचक है सोचकर अंदर से रात की बची रोटियाँ मँगवायी . उसे रोटी देकर पलटते हुए उसने बर्तन वाले से कहा -

तो भैय्या ! क्या सोचा ? दो साड़ियों में दे रहे हो या मैं वापस रख लूँ ! "बर्तन वाले ने उसे इस बार चुपचाप टब पकड़ाया और दोनों पुरानी साड़ियाँ अपने गठ्ठर में बाँध कर बाहर निकला...

अपनी जीत पर मुस्कुराती हुई महिला दरवाजा बंद करने को उठी तो सामने नजर गयी... गली के मुहाने पर बर्तन वाला अपना गठ्ठर खोलकर उसकी दी हुई दोनों  साड़ियों में से एक साड़ी उस अर्ध विक्षिप्त महिला को तन ढँकने के लिए दे रहा था ! !!

हाथ में पकड़ा हुआ टब अब उसे चुभता हुआ सा महसूस हो रहा था....! बर्तन वाले के आगे अब वो खुद को हीन महसूस कर रही थी . कुछ हैसियत न होने के बावजूद बर्तन वाले ने उसे परास्त कर दिया था ! !! वह अब अच्छी तरह समझ चुकी थी कि बिना झिकझिक किये उसने मात्र दो ही साड़ियों में टब क्यों दे दिया था .

कुछ देने के लिए आदमी की हैसियत नहीं , दिल बड़ा होना चाहिए....!! आपके पास क्या है ? और कितना है ? यह कोई मायने नहीं रखता ! आपकी सोच व नीयत सर्वोपरि होना आवश्यक है .

और ये वही समझता है जो इन परिस्थितियों से गुजरा हो.....! !!

Saturday, January 23, 2021

प्रभु

प्रभु.........

एक सब्ज़ी वाला था, सब्ज़ी की पूरी दुकान साइकल पर लगा कर घूमता रहता था ।

"प्रभु" उसका तकिया कलाम था । कोई पूछता आलू कैसे दिये, 10 रुपये प्रभु । हरी धनीया है क्या ? बिलकुल ताज़ा है प्रभु। वह सबको प्रभु कहता था । लोग भी उसको प्रभु कहकर पुकारने लगे।

एक दिन उससे किसी ने पूछा तुम सबको प्रभु-प्रभु क्यों कहते हो, यहाँ तक तुझे भी लोग इसी उपाधि से बुलाते हैं और तुम्हारा कोई असली नाम है भी या नहीं ?

सब्जी वाले ने कहा है न प्रभु , मेरा नाम भैयालाल है। प्रभु, मैं शुरू से अनपढ़ गँवार हूँ। गॉव में मज़दूरी करता था,

 एक बार गाँव में एक नामी सन्त  जी के प्रवचन हुए । प्रवचन मेरे पल्ले नहीं पड़े, लेकिन एक लाइन मेरे दिमाग़ में आकर फँस गई 

, उन संत ने कहा हर इन्सान में प्रभु का वास हैं -तलाशने की कोशिश तो करो पता नहीं किस इन्सान में मिल जाय और तुम्हारा उद्धार कर जाये,

 बस उस दिन से मैने हर मिलने वाले को प्रभु की नज़र से देखना और पुकारना शुरू कर दिया वाकई चमत्त्कार हो गया दुनिया के लिए शैतान आदमी भी मेरे लिये प्रभु रूप हो गया । 

ऐसे दिन फिरें कि मज़दूर से व्यापारी हो गया सुख समृद्धि के सारे साधन जुड़ते गये मेरे लिये तो सारी दुनिया ही प्रभु रूप बन गईं।

"लाख टके की बात"

जीवन एक प्रतिध्वनि है आप जिस लहजे में आवाज़ देंगे पलटकर आपको उसी लहजे में सुनाईं देंगीं। न जाने किस रूप में प्रभु मिल जाये। 
                   
🙏🙏💥💥⚔️⚔️🚩🚩

🙏🙏

           🇮🇳 जय श्री कृष्ण 🚩

Wednesday, January 20, 2021

राग , विराग और वीतराग

बड़ी मीठी कथा है, याज्ञवल्क्य घर छोड़कर जाने लगा। उसकी दो पत्नियां हैं, कात्यायिनी और मैत्रेयी। उसने उन दोनों को बुलाकर कहा कि मेरी धन-संपदा आधी-आधी बांट देता हूं। मैं जाता हूं अब त्याग करके। अब मैं प्रभु की खोज में निकलता हूं।

मैत्रेयी राजी हो गई; साधारण स्त्री थी। साधारण स्त्री का मतलब, जिसे पति भी इसीलिए मूल्यवान होता है कि उसके पास संपत्ति है। ठीक है, पति जाता है, संपत्ति दे जाता है–कुछ भी नहीं जाता। मैत्रेयी राजी हो गई। वह ठीक स्त्री थी।

लेकिन कात्यायिनी ने एक सवाल उठाया। वह साधारण स्त्री न थी। कात्यायिनी ने कहा कि जो धन तुम्हें व्यर्थ हो गया, तो तुम मुझे किसलिए दे जाते हो? अगर व्यर्थ है, तो बोझ मुझे मत दे जाओ। और अगर सार्थक है, तो तुम भी छोड़कर क्यों जाते हो?

कात्यायिनी ने बड़ा ठीक सवाल उठाया। अगर व्यर्थ है, राख है, धूल है, तो मुझे देकर इतने गौरवान्वित क्यों होते हो? अगर सार्थक है, तो छोड़कर कहां जाते हो? रुको! अगर सार्थक है, तो हम साथ-साथ भोगें। और अगर व्यर्थ है, तो मुझे भी उसी धन की खबर दो, जो सार्थक है, जिसकी खोज में तुम जाते हो।

याज्ञवल्क्य मुश्किल में पड़ गया होगा। अभी याज्ञवल्क्य सिर्फ विराग में जा रहा था। कात्यायिनी ने उसे वीतराग के डायमेंशन में, वीतराग के आयाम में उन्मुख किया। अभी उसे सार्थक था धन, इसीलिए तो बांटने को उत्सुक था। अभी कुछ न कुछ अर्थ था उसे धन में। छोड़ता था जरूर, लेकिन सार्थक था। अभी वह विराग की दिशा में मुड़ता था। लेकिन कात्यायिनी ने उसे एक नई दिशा में, एक नए आयाम का इशारा किया। उसने कहा कि छोड़कर जाते हो, देकर जाते हो, गौरवान्वित हो कि काफी दे जा रहे हो, तो फिर तुम छोड़कर जाते नहीं। धन तुम्हें सार्थक है; धन तुम्हें पकड़े ही हुए है!

कृष्ण कहते हैं, जो राग के पार हो जाता है–बियांड। वीतराग का अर्थ है, बियांड अटैचमेंट; डिटैचमेंट नहीं। वीतराग का अर्थ है, आसक्ति के पार; विरक्त नहीं। विरक्त विपरीत आसक्ति में होता है, पार नहीं होता। वह एक ध्रुव से दूसरे ध्रुव पर चला जाता है; दोनों ध्रुव के पार नहीं होता। वह एक द्वंद्व के छोर से द्वंद्व के दूसरे छोर पर सरक जाता है, लेकिन द्वंद्वातीत नहीं होता।

कृष्ण कहते हैं, जो वीतराग हो जाता है, वह मेरे शरीर को उपलब्ध हो जाता है। वीतराग, वीतभय, वीतक्रोध; जो इन सबके पार हो जाता है। वीतलोभ। वह तीसरा ही आयाम है। थर्ड डायमेंशन है।

तीन आयाम हैं जगत में। किसी चीज के प्रति राग, अर्थात उसे पास रखने की इच्छा। किसी चीज के प्रति विराग, अर्थात उसे पास न रखने की इच्छा। और किसी चीज के प्रति वीतराग, अर्थात वह पास हो या दूर, अर्थहीन; उससे भेद नहीं पड़ता।

ओशो

Friday, January 15, 2021

रिश्ते

रिश्ते मन से बनते है बातों से नही,
कुछ लोग बहुत सी बातो के बाद भी अपने नही होते
और कुछ शांत रहकर भी अपने बन जाते है ...

● हम वो आखरी पीढ़ी  हैं, जिन्होंने कई-कई बार मिटटी के घरों में बैठ कर परियों और राजाओं की कहानियां सुनीं, जमीन पर बैठ कर खाना खाया है, प्लेट में चाय पी है।

● हम वो आखरी लोग हैं, जिन्होंने बचपन में मोहल्ले के मैदानों में अपने दोस्तों के साथ पम्परागत खेल, गिल्ली-डंडा, छुपा-छिपी, खो-खो, कबड्डी, कंचे जैसे खेल खेले हैं।

● हम वो आखरी पीढ़ी के लोग हैं, जिन्होंने कम या बल्ब की पीली रोशनी में होम वर्क किया है और नावेल पढ़े हैं।

● हम वही पीढ़ी के लोग हैं, जिन्होंने अपनों के लिए अपने जज़्बात, खतों में आदान प्रदान किये हैं।

● हम वो आखरी पीढ़ी के लोग हैं, जिन्होंने कूलर, एसी या हीटर के बिना ही  बचपन गुज़ारा है।

● हम वो आखरी लोग हैं, जो अक्सर अपने छोटे बालों में, सरसों का ज्यादा तेल लगा कर, स्कूल और शादियों में जाया करते थे।

● हम वो आखरी पीढ़ी के लोग हैं, जिन्होंने स्याही वाली दावात या पेन से कॉपी,  किताबें, कपडे और हाथ काले, नीले किये है।

● हम वो आखरी लोग हैं, जिन्होंने टीचर्स से मार खाई है।

● हम वो आखरी लोग हैं, जो मोहल्ले के बुज़ुर्गों को दूर से देख कर, नुक्कड़ से भाग कर, घर आ जाया करते थे।

● हम वो आखरी लोग हैं, जिन्होंने अपने स्कूल के सफ़ेद केनवास शूज़ पर, खड़िया का पेस्ट लगा कर चमकाया हैं।

● हम वो आखरी लोग हैं, जिन्होंने गोदरेज सोप की गोल डिबिया से साबुन लगाकर शेव बनाई है। जिन्होंने गुड़  की चाय पी है। काफी समय तक सुबह काला या लाल दंत मंजन या सफेद टूथ पाउडर इस्तेमाल किया है। 

● हम निश्चित ही वो आखिर लोग हैं, जिन्होंने चांदनी रातों में, रेडियो पर BBC की ख़बरें, विविध भारती, आल इंडिया रेडियो और बिनाका जैसे  प्रोग्राम सुने हैं।

● हम ही वो आखिर लोग हैं, जब हम सब शाम होते ही छत पर पानी का छिड़काव किया करते थे। उसके बाद सफ़ेद चादरें बिछा कर सोते थे। एक स्टैंड वाला पंखा सब को हवा के लिए हुआ करता था। सुबह सूरज निकलने के बाद भी ढीठ बने सोते रहते थे। वो सब दौर बीत गया। चादरें अब नहीं बिछा करतीं। डब्बों जैसे कमरों में कूलर, एसी के सामने रात होती है, दिन गुज़रते हैं।

● हम वो आखरी पीढ़ी के लोग हैं, जिन्होने वो खूबसूरत रिश्ते और उनकी मिठास बांटने वाले लोग देखे हैं, जो लगातार कम होते चले गए। अब तो लोग जितना पढ़ लिख रहे हैं, उतना ही खुदगर्ज़ी, बेमुरव्वती, अनिश्चितता, अकेलेपन, व निराशा में खोते जा रहे हैं। हम ही वो खुशनसीब लोग हैं, जिन्होंने रिश्तों की मिठास महसूस की है...!!

हम एक मात्र वह पीढी है  जिसने अपने माँ-बाप की बात भी मानी और बच्चों की भी मान रहे है.
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ये पोस्ट जिंदगी का एक आदर्श स्मरणीय पलों को दर्शाती है 
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