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Saturday, August 28, 2021

कृष्णा के अनुकूल

जीवन में तृष्णाएं इसलिए आगे आकर खड़ी हैं क्योंकि जीवन का लक्ष्य अभी श्रीकृष्ण से विपरीत है। अपनी पुष्टि करना है अपने अभिमान की पुष्टि करना है अभी लौकिक भौतिक जागतिक ऐहिक ऐन्द्रिक सुखानुभूतियों के प्रयत्न हैं इसलिए तृष्णा आगे है कृष्ण पीछे खड़े हैं 

जिस दिन जीवन का परम लक्ष्य श्रीगोविन्द की शरणागति हो जाएगा भक्त सबकुछ करता है पर आगे श्रीठाकुरजी को रखता है। 

जिस क्षण सूर्य की तरफ दौड़े उस क्षण स्वतः परछाई पीछे हो जाती है सूर्य आगे आते ही परछाई पीछे हो जाता है दिया जलते ही अंधकार मिट जाता है।   माया का होना ही इसकी खबर है कि अभी राम आए नहीं है। दीप प्रज्ज्वलित होते ही अंधकार निवृत्त हो जाता है। 

ये सब तभी प्रभाव पड़ेगा। इसलिए ये सब प्रभाव को छुटाने कि कोशिश ही क्यों की जाय? डंडा लेकर अंधकार को नहीं भगा सकते। दिया जला दो अंधकार अपने आप भाग जाएगा। 

क्या छोड़ना है क्या पाना है ये छोड़ो वो छोड़ो ये पाओ इसे पहचानो इसे त्यागो इसे पकड़ो। इन सब बवालों में पड़ते क्यूँ हो? सीधी-सीधी सी बात है श्रीगोविन्द के चरणारविंद की विशुद्ध अनुरक्ति श्रीगुरुकृपा से हो जाय प्रेम द्वीप प्रज्ज्वलित हो जाए 

भागवत जी ज्ञान के दीप को प्रज्ज्वलित कर देती हैं  ये आध्यात्म का दिया है। जैसे ही आध्यात्म का दिया प्रकट होता है अज्ञान की स्वतः निवृत्ति हो जाती है। 

इसलिए कृष्ण कितने प्राप्त हैं ये प्रश्न नहीं है वो तो सतत् सुलभ हैं बड़ी बात ये है कि हमारे भीतर श्रीकृष्ण की अनुकूलता कितनी है? कृष्णानुकूलनम्।।

आनुकूल्यता ही श्रीकृष्ण प्रेम का सबसे बड़ा प्रमाण है। वो अनुकूलता कितनी है? 

।। परमाराध्य पूज्य श्रीमन्माध्वगौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।

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