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Friday, August 29, 2014

Gourd oil recipes .....

Gourd oil recipes 
Take 250 grams of sesame or coconut oil. Fourteen kg gourd (Dudhi) Pisen and finer the fabric, cut it into small pieces firmly remove his water filter. 
Oil in a pot and boil on low heat. When it should be slightly warm water then slowly pour out of the gourd. Now to the boil. When all the water to cold water should keep the oil off. Refrigerate filling in a bottle to keep him on. 
It Rogan almond oil (almond oil) is known as the younger brother. Body oil massage twice a week from this there are many benefits. In short, the memory grows, lives and minds in the brain is fueled refrigeration.

Tuesday, August 26, 2014

दमा (श्वास रोग ) Asthma 
आज के समय में दमा तेज़ी से स्त्री - पुरुष व बच्चों को अपना शिकार बना रहा है | साँस लेने में दिक्कत या कठिनाई महसूस होने को श्वास रोग कहते हैं | फेफड़ों की नलियों की छोटी-छोटी पेशियों में जब अकड़न युक्त संकुचन उत्पन्न होता है तो फेफड़ा, साँस को पूरी तरह अंदर अवशोषित नहीं कर पाता है जिससे रोगी पूरा श्वास खींचे बिना ही श्वास छोड़ने को विवश हो जाता है | इसी स्थिति को दमा या श्वास रोग कहते हैं |
दमा को पूर्ण रूप से ठीक करने हेतु प्राणायाम का अभ्यास सर्वोत्तम है |
विभिन्न औषधियों से दमे का उपचार :----
१- अदरक के रस में शहद मिलाकर चाटने से श्वास , खांसी व जुक़ाम में लाभ होता है ।
२- प्याज़ का रस , अदरक का रस , तुलसी के पत्तों का रस व शहद ३-३ ग्राम की मात्रा में लेकर सुबह-शाम सेवन करने से अस्थमा रोग नष्ट होता है |
३- काली मिर्च - २० ग्राम , बादाम की गिरी - १०० ग्राम और खाण्ड - ५० ग्राम लें | तीनों को अलग - अलग बारीक़ पीस कर चूर्ण बना लें , फिर तीनों को अच्छी तरह से मिला लें | इस मिश्रण की एक चम्मच लें और रात को सोते समय गर्म दूध से लें , लाभ होगा |
विशेष :-- जिनको मधुमेह हो वे खाण्ड का प्रयोग न करें तथा जिनको अम्लपित्त [acidity ] हो वे काली मिर्च १० ग्राम की मात्र में प्रयोग करें |

Monday, August 25, 2014

मौसम परिवर्तन ....

मौसम परिवर्तन...
इस समय वर्षा के कारण कही ज्यादा पानी है तो कही कम पानी की वजह से मौसम काफी खराब है ! अत्यधिक गर्मी और उमस से हाथ पैर दुखना , बुखार जैसा लगना सामान्य बात है ! इस सब से बचने के लिए २१ पत्ती तुलसी की ४ दाने काली मिर्च २ लौंग और ५ ग्राम गिलोय का पाउडर ३ कप पानी में उबालकर जब वह एक कप के लगभग हो जाए तब उसे छानकर ठंडा करके सुबह खाली पेट या रात को आखिर में सोते समय हर ३ दिन में एक बार सेवन करे ! छोटी मोटी बीमारियों से बचे रहेंगे !!!
सुख दुःख,,,,
यद्यपि कोई दुखी होना नहीं चाहता फिर भी दुखी होता है , दुखी होना ही पड़ता है !जीवन में सुख और दुःख दोनों आते जाते रहते है इन्हें भोगना ही पड़ता है लेकिन इनको भोगने में एक फर्क यह होता है की सुख भोगते समय हमें वक़्त का पता ही नहीं चलता इसलिए सुख हमें कम मालूम होता है , और दुःख भोगते समय हमें लम्बा और भारी मालूम होता है इसलिए दुःख ज्यादा मालूम होता है !अतः विवेक से काम लिया जाए तो दुःख की महत्ता और उपयोगिता को समझ कर दुःख की पीड़ा को कम किया जा सकता है !!![ निरोगधाम पत्रिका के जुलाई २०१४ के वर्ष ऋतू अंक से ]

अमरबेल.

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यह एक ही वृक्ष पर प्रतिवर्ष पुनः नवीन होती है तथा यह वृक्षों के ऊपर फैलती है , भूमि से इसका कोई सम्बन्ध नहीं रहता अतः आकाशबेल आदि नामों से भी पुकारी जाती है | अमरबेल एक परोपजीवी और पराश्रयी लता है , जो रज्जु [रस्सी ] की भांति बेर , साल , करौंदे आदि वृक्षों पर फ़ैली रहती है | इसमें से महीन सूत्र निकलकर वृक्ष की डालियों का रस चूसते रहते हैं , जिससे यह तो फलती- फूलती जाती है , परन्तु इसका आश्रयदाता धीरे - धीरे सूखकर समाप्त हो जाता है | आज हम अमरबेल के कुछ औषधीय गुणों की चर्चा कर रहे हैं ----

१-अमरबेल को तिल के तेल में या शीशम के तेल में पीसकर सर पर लगाने से गंजेपन में लाभ होता है तथा बालों की जड़ मज़बूत होती हैं | यह प्रयोग धैर्य पूर्वक लगातार पांच से छह सप्ताह करें | 
२- लगभग ५० ग्राम अमरबेल को कूटकर १ लीटर पानी में पकाकर , बालों को धोने से बाल सुनहरे व चमकदार बनते हैं तथा बालों का झड़ना व रुसी की समस्या इत्यादि भी दूर होती हैं | 
३- अमरबेल के १०-२० मिलीलीटर रस को जल के साथ प्रतिदिन प्रातःकाल पीने से मस्तिष्कगत तंत्रिका [Nervous System ] रोगों का निवारण होता है |
४- अमरबेल के १०मिली स्वरस में ५ ग्राम पिसी हुई काली मिर्च मिलाकर खूब घोटकर नित्य प्रातः काल ही रोगी को पिला दें | तीन दिन में ही ख़ूनी और बादी दोनों प्रकार की बवासीर में विशेष लाभ होता है | 
५- अमरबेल को पीसकर थोड़ा गर्म कर लेप करने से गठिया की पीड़ा में लाभ होता है तथा सूजन शीघ्र ही दूर हो जाती है । अमरबेल का काढ़ा बनाकर स्नान करने से भी वेदना में लाभ होता है | 
६- अमरबेल के २-४ ग्राम चूर्ण को या ताज़ी बेल को पीस कर थोड़ी सी सोंठ और थोड़ा सा घी मिलाकर लेप करने से पुराना घाव भी भर जाता है |

Friday, August 1, 2014

'पेट भरे' होने पर ही सुझती है , दुनिया भर की 'बदमाशियाँ' .
वरना 'भूखा पेट' लेकर कोई , "ईश्क" नहीं करता ...!
भूख लगी तो तंदूर की सूझी ,
भर गया पेट तो दूर की सूझी.....
कई बार जीवन में सत्य और स्वाभिमान के मार्ग पर बहुत अकेले चलना पड़ता है,मत ठहरिए! ये दोनों जब साथ हैं तो आप अकेले कैसे? हिम्मत मत हारिये!!!
सेवा करने की शिक्षा सूर्य से लेनी चाहिए। जो हमेशा नित्य प्रतिदिन संसार को रोशन करने के लिए प्रकट हो जाता है।
आपका दिन मंगलमय हो!!
महत्वपूर्ण जानकारी
अगर २ साल का बच्चा खुलकर नहीं बोल पाता और केवल कुछ शब्द ही बोलता है तो पेरेंट्स परेशान हो जाते है , ऐसी अवस्था में कुछ बाते ध्यान देनी चाहिए

- कभी कभी बच्चे अकेलापन महसूस करते है ,परिवार में अकेले रहते है इसलिए उनके बोलने में लेट होता है
- बच्चे की सुनाने की क्षमता और समझने की क्षमता पर ध्यान देना चाहिए ,अगर बच्चा अच्छे से सुन और समझ रहा है तो ज्यादा घबराने की बात नहीं है |
- कही -२ बच्चे इशारे में अपनी बात रखते है और पेरेंट्स उसे अच्छे से समझ जाते है ,इसलिए बच्चे बोलने में लेट करते है ,ऐसी दशा में उनके इशारो को इग्नोर करना चाहिए जिससे वो बोलने के लिए प्रेरित हो
- बोलने की प्रवृत्ति कुछ हद तक अनुवांशिक भी होती है। अतः यदि बच्चा देर से बोल रहा है तो उसका कारण कुछ हद तक आपके परिवार में देर से बोलने की प्रवृत्ति भी हो सकती है।
- बच्चो को टीवी से दूर रख कर उनके साथ खेलना चाहिए और उन्हें अपनी उम्र के और बच्चो से मिलवाना चाहिए ,इससे उनमे बोलने की प्रवृत्ति बढ़ेगी

इस तरह थोड़ा सा ध्यान अगर हम अपने बच्चे पर देंगे तो यह समस्या दूर हो सकती है ,अगर फिर भी समस्या बरकरार रहे तो डॉक्टर को दिखाना चाहिए |
●आइये जानते हैं कि ब्रह्म मुहूर्त क्या है।● 
■इसके वैज्ञानिक लाभ क्या हैं।■

ब्रह्म मुहूर्त का ही विशेष महत्व क्यों?

रात्रि के अंतिम प्रहर को ब्रह्म मुहूर्त कहते हैं। हमारे ऋषि मुनियों ने इस मुहूर्त का विशेष महत्व बताया है। उनके अनुसार यह समय निद्रा त्याग के लिए सर्वोत्तम है। ब्रह्म मुहूर्त में उठने से सौंदर्य, बल, विद्या, बुद्धि और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। सूर्योदय से चार घड़ी (लगभग डेढ़ घण्टे) पूर्व ब्रह्म मुहूर्त में ही जग जाना चाहिये। इस समय सोना शास्त्र निषिद्ध है।

“ब्रह्ममुहूर्ते या निद्रा सा पुण्यक्षयकारिणी”।
(ब्रह्ममुहूर्त की पुण्य का नाश करने वाली होती है।)

ब्रह्म मुहूर्त का विशेष महत्व बताने के पीछे हमारे विद्वानों की वैज्ञानिक सोच निहित थी। वैज्ञानिक शोधों से ज्ञात हुआ है कि ब्रह्म मुहुर्त में वायु मंडल प्रदूषण रहित होता है। इसी समय वायु मंडल में ऑक्सीजन (प्राण वायु) की मात्रा सबसे अधिक (41 प्रतिशत) होती है, जो फेफड़ों की शुद्धि के लिए महत्वपूर्ण होती है। शुद्ध वायु मिलने से मन, मस्तिष्क भी स्वस्थ रहता है।

आयुर्वेद के अनुसार ब्रह्म मुहूर्त में उठकर टहलने से शरीर में संजीवनी शक्ति का संचार होता है। यही कारण है कि इस समय बहने वाली वायु को अमृततुल्य कहा गया है। इसके अलावा यह समय अध्ययन के लिए भी सर्वोत्तम बताया गया है क्योंकि रात को आराम करने के बाद सुबह जब हम उठते हैं तो शरीर तथा मस्तिष्क में भी स्फूर्ति व ताजगी बनी रहती है। प्रमुख मंदिरों के पट भी ब्रह्म मुहूर्त में खोल दिए जाते हैं तथा भगवान का श्रृंगार व पूजन भी ब्रह्म मुहूर्त में किए जाने का विधान है।

ब्रह्ममुहूर्त के धार्मिक, पौराणिक व व्यावहारिक पहलुओं और लाभ को जानकर हर रोज इस शुभ घड़ी में जागना शुरू करें तो बेहतर नतीजे मिलेंगे।

आइये जाने ब्रह्ममुहूर्त का सही वक्त व खास फायदे –

धार्मिक महत्व - व्यावहारिक रूप से यह समय सुबह सूर्योदय से पहले चार या पांच बजे के बीच माना जाता है। किंतु शास्त्रों में साफ बताया गया है कि रात के आखिरी प्रहर का तीसरा हिस्सा या चार घड़ी तड़के ही ब्रह्ममुहूर्त होता है। मान्यता है कि इस वक्त जागकर इष्ट या भगवान की पूजा, ध्यान और पवित्र कर्म करना बहुत शुभ होता है। क्योंकि इस समय ज्ञान, विवेक, शांति, ताजगी, निरोग और सुंदर शरीर, सुख और ऊर्जा के रूप में ईश्वर कृपा बरसाते हैं। भगवान के स्मरण के बाद दही, घी, आईना, सफेद सरसों, बैल, फूलमाला के दर्शन भी इस काल में बहुत पुण्य देते हैं।

पौराणिक महत्व - वाल्मीकि रामायण के मुताबिक माता सीता को ढूंढते हुए श्रीहनुमान ब्रह्ममुहूर्त में ही अशोक वाटिका पहुंचे। जहां उन्होंने वेद व यज्ञ के ज्ञाताओं के मंत्र उच्चारण की आवाज सुनी।

व्यावहारिक महत्व - व्यावहारिक रूप से अच्छी सेहत, ताजगी और ऊर्जा पाने के लिए ब्रह्ममुहूर्त बेहतर समय है। क्योंकि रात की नींद के बाद पिछले दिन की शारीरिक और मानसिक थकान उतर जाने पर दिमाग शांत और स्थिर रहता है। वातावरण और हवा भी स्वच्छ होती है। ऐसे में देव उपासना, ध्यान, योग, पूजा तन, मन और बुद्धि को पुष्ट करते हैं।

इस तरह शौक-मौज या आलस्य के कारण देर तक सोने के बजाय इस खास वक्त का फायदा उठाकर बेहतर सेहत, सुख, शांति और नतीजों को पा सकते हैं।
रात्रिभोजन न करने के वैज्ञानिक कारण
रात में भोजन, पानी आदि ग्रहण करना जैन धर्म में निषेध हैं| इस निषेध के कई कारण हैं| कीटाणु और रोगाणु जिनको नग्न आंखों से देखना असंभव हैं, वे सूरज की रौशनी में गायब हो जाते हैं, वास्तव में नष्ट नहीं होते; वे छायादार स्थानों में शरण लेते हैं और सूर्यास्त के बाद; वे वातावरण में प्रवेश कर उसे व्याप्त करते हैं और फिर हमारे भोजन में मिल जाते हैं| इस तरह का भोजन उपभोग करने से कीटाणुओं और जीवाणुओ की हत्या होती हैं और बारी में हमारे बीमार स्वास्थ्य का कारण बनते हैं|
हमारी जैविक घड़ी, सूर्य के उदय-अस्त के अनुसार सेट की गयी है| जब सूरज हमारे बिलकुल ऊपर होता है, तब हमारी जठराग्नि उसकी चरम सीमा पर होती है| रात के समय में खाना ठीक से नहीं पचता क्योंकि पाचन प्रणाली रात में सूर्य के प्रकाश की अनुपस्थिति के कारण निष्क्रिय हो जाती है और हमें अपच की समस्या का सामना करना पड़ता है| इन घंटो के दौरान रस प्रक्रिया धीमी हो जाती हैं क्योंकि हम किसी भी प्रकार की शारीरिक गतिविधि में लिप्त नहीं होते जिससे पाचन में मदद मिलती हो| इसलिए रात के समय में ग्रहण किया हुआ भोजन पचा नहीं करता और वह शारीरिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है| यह अपचित खाना वजन में वृद्धि करता हैं और वसा के रूप में संग्रहीत होता है| यह सांस में गंध, दांतों की सड़न, कब्ज, घुटने के जोड़ों में दर्द और गले के कई रोग पैदा करता हैं|
भारतीय विज्ञान स्वास्थ्य के एक नियम अनुसार, व्यक्ति को भोजन करने के बाद कई बार थोड़ा-थोड़ा पानी पीना चाहिए| कुछ वैज्ञानिकों का यह भी कहना है कि व्यक्ति को सोने के कम से कम 3-4 घंटे पहले भोजन कर लेना चाहिए ताकि सोने से पूर्व खाना बराबर पच सके| हाँग-काँग देश में हाल ही में एक शोध से साबित हुआ है कि जो शाम को जल्दी खाना खाते हैं, वे दिल की बीमारियों से कम ग्रस्त होते हैं|
रात्रि भोजन से बचने के अन्य वैज्ञानिक कारण:
1. नींद चक्र में अस्थिरता:
अनुसंधान पाया गया है कि रात्रि में खाने से पाचन प्रक्रिया पर निद्रा चक्र का गंभीर प्रभाव होता है, जिसकी वजह से व्यक्ति को निद्रा के बीचमे कई बार जागना पड़ सकता हैं|
2. पेशाब वृद्धि और उत्सर्जन आवश्यकताए:
रात के दौरान पानी और भोजन ग्रहण करने से; शौचालय के उपयोग की संख्या में वृद्धि हो सकती है|
कुछ खाद्य पदार्थ और रात में खाने से उनके परिणाम:
1. उच्च वसावाले भोजन: तेल, पनीर, फ्रेंच फ्राइज़, अतिरिक्त पनीर और चीज़ के साथ पिज्जा, चिकना भोजन, आदि उच्च वसावाले भोजन को रात में देर से ग्रहण करने से पाचन तंत्र में जमा हो जाते है|
2. मसालेदार खाना: न केवल मसालेदार खाना रात में खाने पर सबसे ज्यादा हानिकारक होता है, बल्कि अपनी निद्रा चक्र में भी बाधा उत्पन करता हैं| इसके अलावा, एन्दोर्फिंस का आक्रमण होने पर सोना और भी कठिन हो जाता हैं| मसालेदार भोजन व्यक्ति को शारीरिक रूप से असहज महसूस करा सकता हैं| मसालेदार खाना अन्तरदाह, पेट और मौजूदा समस्याओं को और भी ख़राब करने का कारण बन सकता हैं|
3. कैफीन: आप में से अधिकांश लोग शायद बेहतर जानते हैं की रात में कैफीनवाली कॉफी, चाय से बचना चाहिए, लेकिन बात यह हैं की, कई तरह के खानों में कैफीन पहले से ही शामिल होता हैं|
4. लाल मांस: लाल मांस भोजन का एक प्रकार है जिससे पचने के लिए बहुत लंबा समय लगता हैं, क्योंकि प्रोटीन और वसा लाल मांस के बहुत सारे प्रकार में पाये जाते है| इसी कारण, लाल मांस का रात में उपभोग करने से एन्दोर्फिंस पैदा होते हैं जिससे सोने में और भी कठिनाई होती हैं|
5. अखरोट आदि: आप सोच रहे होंगे कि क्या अखरोट स्वस्थ भोजन नहीं हैं? बेशक है – सेम में बहुत सारा रेशे वाला भाग हैं, जो निस्संदेह आपके शरीर के लिए बहुत अच्छा है| दुर्भाग्य से, सेम का रेशे वाला भाग रात में खाने के लिए बहुत ही हानिकारक हैं क्योंकि वे पचाने के कार्यक्रम को असहज कर देता हैं जिससे रात में पेट की समस्याऍ पैदा हो सकती हैं|
विभिन्न धार्मिक विचारों:
1. जो व्यक्ति शराब, मांस, पेय, सूर्यास्त के बाद खाता है और जमीन के नीचे उगाई सब्जियों का उपभोग करता है; उस व्यक्ति के किये गए तीर्थयात्रा, प्रार्थना और किसी भी प्रकार कि भक्ति बेकार हैं|
- महाभारत (रिशिश्वरभरत)
2. जो व्यक्ति बरसात के मौसम में सूर्यास्त के बाद खाना खाता हैं, उसके पाप हजारों “चंद्रायणतप” करने पर भी नहीं धुलतें|
- रिशिश्वरभरत (वैदिकदर्शन)
3. जो व्यक्ति सूर्यास्त के पहले खाते हैं और विशेष रूप से बरसात के मौसम में रात्रि भोजन का त्याग करते हैं; उस व्यक्ति के इस जीवन की और अगले जीवन की सारी इच्छाएँ पूर्ण होती हैं|
- योगवशिष्ट पुर्वघश्लो 108
4. मारकंडपुराण में यह कहा गया है कि सूर्यास्त के बाद पानी पीना रक्त पीने के और भोजन करना मांस खाने के बराबर है|
- मारकंडऋषि
5. एक आदमी की इष्टतम दैनिक दिनचर्या के लिए रात में खाने से बचना चाहिए क्योंकि उस समय जठराग्नि, जो खाना पचाने का काम करती हैं, उस दौरान बहुत कमजोर होती हैं|
- चरकसंहिता और अष्टांग संग्रह
6. हिंदुओं के प्राचीन शास्त्रों में यह कहा गया है कि, “चत्वारि नरक्द्वाराणि प्रथमं रात्रिभोजनम्”, मतलब रात्रिभोजन नरक का पहला द्वार है|
यहां तक कि, मधुमक्खियों, गौरैयों, तोते, कबूतर और कई अन्य प्रकार के उत्तम पक्षी भी सूर्यास्त के बाद नहीं खाते|
दुनिया के सभी धर्मों में से, जैन धर्म खान-पान जैसी छोटी चीजों की जांच करने में भी अद्वितीय हैं| जैन धर्म समान रूप से मन, शरीर और आत्मा के विकास पर ध्यान केंद्रित करता है| भोजन के कुछ प्रभाव, दोनों अच्छे और बुरे, न केवल शरीर पर बल्कि मन पर भी असर करते हैं| आखिर जैसा आप खाते है वैसा आप सोचते हैं|
सूर्यास्त के बाद खाने का पाप:
कोई शिकारी छन्नु (९६) भव तक संलग्न शिकार करके जो पापराशी इकट्ठी करता है| उससे मात्र एक तालाब का शोषण करने का पाप बढ जाता है| सौ (१००) भव तक कोई मानव सरोवर सुकाने से जो पाप राशी इकट्ठी करता है| उससे ज्यादा एक वन को आग लगाने से पाप लगता है| एक सौ आठ (१०८) भव तक वन में आग लगाने से जो पाप राशी इकट्ठी होती है उससे ज्यादा पाप एक कुवाणिज्य करने से होता है| एक सौ चुम्मालिश (१४४) भव तक कुवाणिज्य करके जो पाप की राशी एकत्रित होती है उससे ज्यादा पाप एक कुकलंक लगाने में लगता है| एक सौ इक्कावन (१५१) भव तक असत्य कलंक लगाकर जो पाप के पहाड एकत्रित होते हैं उससे ज्यादा पाप एकबार परस्त्रीगमन करने के कारण लगता है| एक सौ निन्याणु (१९९) भव तक परस्त्रीगमन करके जो महाभयानक पापों की पोटली बांधकर आत्मा भारी होता है उससे भी ज्यादा पाप एक दिन के रात्री भोजन करने में लगता है|
यदि आप अब तक के जीवन की रात्रिभोजन के पाप की गणना करते हैं तो संचित कर्मो की राशि असंख्य हो जाती हैं|
यदि आप अपने पूरे जीवन के लिए सूर्यास्त से पहले खाना खाते हैं, तो आपको अपने आधे जीवन के उपवास का फल प्राप्त होता है|
रात्रिभोजन का त्याग, स्वर्ग के द्वार का आगमन हैं|
दैनिक जीवन में लाभ:
1. होटल में नो वेटिंग:
हम सबने अनुभव किया है कि शनिवार/रविवार की रात को होटल में खाने के लिए 10 मिनट से लेके 1-2 घंटे तक होटल के बाहर इंतजार करना पड़ता है| आप इंतज़ार करते करते थक जाते हैं जिसके बाद खाने का मन नहीं करता| और अगर आप के साथ बच्चे हो तो परीस्थिति बदतर हो जाती है| जो लोग सूर्यास्त से पहले खाना खाते हैं उन्हें होटल के बाहर प्रतीक्षा करने की जरूरत नहीं पड़ती क्योंकि बहुत कुछ लोग होते हैं, जो सूर्यास्त से पहले खाना खाते हैं| इसके अलावा, होटल में भोजन, सफाई और स्वचाता की जो सेवा सूर्यास्त के बाद प्रदान होती हैं उससे कई गुना बेहतर सुविधा सूर्यास्त के पहले प्रदान होती हैं|
2. परिवार के लिए समय:
यदि सूर्यास्त से पहले परिवार में हर कोई भोजन कर लेता हो तो, घर के सभी काम पूरे हो जाते हैं और घर की महिलाओं को अपने बच्चों, परिवार और अन्य गतिविधियों के लिए पर्याप्त समय मिल पाता हैं |
सूर्यास्त से पहले नहीं खाने के और भी कई अन्य लाभ हैं| कई लोग इस दिशा में आगे भी बढ़ चुके है|
अगर आप उनमें से हो जो धर्म में विश्वास नहीं रखते, फिर भी रात में न खाने के बहुत सारे वैज्ञानिक कारण हैं जिससे आप चुस्त-दुरुस्त रह सकते हैं|