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Monday, August 25, 2014

सुख दुःख,,,,
यद्यपि कोई दुखी होना नहीं चाहता फिर भी दुखी होता है , दुखी होना ही पड़ता है !जीवन में सुख और दुःख दोनों आते जाते रहते है इन्हें भोगना ही पड़ता है लेकिन इनको भोगने में एक फर्क यह होता है की सुख भोगते समय हमें वक़्त का पता ही नहीं चलता इसलिए सुख हमें कम मालूम होता है , और दुःख भोगते समय हमें लम्बा और भारी मालूम होता है इसलिए दुःख ज्यादा मालूम होता है !अतः विवेक से काम लिया जाए तो दुःख की महत्ता और उपयोगिता को समझ कर दुःख की पीड़ा को कम किया जा सकता है !!![ निरोगधाम पत्रिका के जुलाई २०१४ के वर्ष ऋतू अंक से ]

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