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Friday, January 15, 2021

रिश्ते

रिश्ते मन से बनते है बातों से नही,
कुछ लोग बहुत सी बातो के बाद भी अपने नही होते
और कुछ शांत रहकर भी अपने बन जाते है ...

● हम वो आखरी पीढ़ी  हैं, जिन्होंने कई-कई बार मिटटी के घरों में बैठ कर परियों और राजाओं की कहानियां सुनीं, जमीन पर बैठ कर खाना खाया है, प्लेट में चाय पी है।

● हम वो आखरी लोग हैं, जिन्होंने बचपन में मोहल्ले के मैदानों में अपने दोस्तों के साथ पम्परागत खेल, गिल्ली-डंडा, छुपा-छिपी, खो-खो, कबड्डी, कंचे जैसे खेल खेले हैं।

● हम वो आखरी पीढ़ी के लोग हैं, जिन्होंने कम या बल्ब की पीली रोशनी में होम वर्क किया है और नावेल पढ़े हैं।

● हम वही पीढ़ी के लोग हैं, जिन्होंने अपनों के लिए अपने जज़्बात, खतों में आदान प्रदान किये हैं।

● हम वो आखरी पीढ़ी के लोग हैं, जिन्होंने कूलर, एसी या हीटर के बिना ही  बचपन गुज़ारा है।

● हम वो आखरी लोग हैं, जो अक्सर अपने छोटे बालों में, सरसों का ज्यादा तेल लगा कर, स्कूल और शादियों में जाया करते थे।

● हम वो आखरी पीढ़ी के लोग हैं, जिन्होंने स्याही वाली दावात या पेन से कॉपी,  किताबें, कपडे और हाथ काले, नीले किये है।

● हम वो आखरी लोग हैं, जिन्होंने टीचर्स से मार खाई है।

● हम वो आखरी लोग हैं, जो मोहल्ले के बुज़ुर्गों को दूर से देख कर, नुक्कड़ से भाग कर, घर आ जाया करते थे।

● हम वो आखरी लोग हैं, जिन्होंने अपने स्कूल के सफ़ेद केनवास शूज़ पर, खड़िया का पेस्ट लगा कर चमकाया हैं।

● हम वो आखरी लोग हैं, जिन्होंने गोदरेज सोप की गोल डिबिया से साबुन लगाकर शेव बनाई है। जिन्होंने गुड़  की चाय पी है। काफी समय तक सुबह काला या लाल दंत मंजन या सफेद टूथ पाउडर इस्तेमाल किया है। 

● हम निश्चित ही वो आखिर लोग हैं, जिन्होंने चांदनी रातों में, रेडियो पर BBC की ख़बरें, विविध भारती, आल इंडिया रेडियो और बिनाका जैसे  प्रोग्राम सुने हैं।

● हम ही वो आखिर लोग हैं, जब हम सब शाम होते ही छत पर पानी का छिड़काव किया करते थे। उसके बाद सफ़ेद चादरें बिछा कर सोते थे। एक स्टैंड वाला पंखा सब को हवा के लिए हुआ करता था। सुबह सूरज निकलने के बाद भी ढीठ बने सोते रहते थे। वो सब दौर बीत गया। चादरें अब नहीं बिछा करतीं। डब्बों जैसे कमरों में कूलर, एसी के सामने रात होती है, दिन गुज़रते हैं।

● हम वो आखरी पीढ़ी के लोग हैं, जिन्होने वो खूबसूरत रिश्ते और उनकी मिठास बांटने वाले लोग देखे हैं, जो लगातार कम होते चले गए। अब तो लोग जितना पढ़ लिख रहे हैं, उतना ही खुदगर्ज़ी, बेमुरव्वती, अनिश्चितता, अकेलेपन, व निराशा में खोते जा रहे हैं। हम ही वो खुशनसीब लोग हैं, जिन्होंने रिश्तों की मिठास महसूस की है...!!

हम एक मात्र वह पीढी है  जिसने अपने माँ-बाप की बात भी मानी और बच्चों की भी मान रहे है.
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ये पोस्ट जिंदगी का एक आदर्श स्मरणीय पलों को दर्शाती है 
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