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Wednesday, January 20, 2021

राग , विराग और वीतराग

बड़ी मीठी कथा है, याज्ञवल्क्य घर छोड़कर जाने लगा। उसकी दो पत्नियां हैं, कात्यायिनी और मैत्रेयी। उसने उन दोनों को बुलाकर कहा कि मेरी धन-संपदा आधी-आधी बांट देता हूं। मैं जाता हूं अब त्याग करके। अब मैं प्रभु की खोज में निकलता हूं।

मैत्रेयी राजी हो गई; साधारण स्त्री थी। साधारण स्त्री का मतलब, जिसे पति भी इसीलिए मूल्यवान होता है कि उसके पास संपत्ति है। ठीक है, पति जाता है, संपत्ति दे जाता है–कुछ भी नहीं जाता। मैत्रेयी राजी हो गई। वह ठीक स्त्री थी।

लेकिन कात्यायिनी ने एक सवाल उठाया। वह साधारण स्त्री न थी। कात्यायिनी ने कहा कि जो धन तुम्हें व्यर्थ हो गया, तो तुम मुझे किसलिए दे जाते हो? अगर व्यर्थ है, तो बोझ मुझे मत दे जाओ। और अगर सार्थक है, तो तुम भी छोड़कर क्यों जाते हो?

कात्यायिनी ने बड़ा ठीक सवाल उठाया। अगर व्यर्थ है, राख है, धूल है, तो मुझे देकर इतने गौरवान्वित क्यों होते हो? अगर सार्थक है, तो छोड़कर कहां जाते हो? रुको! अगर सार्थक है, तो हम साथ-साथ भोगें। और अगर व्यर्थ है, तो मुझे भी उसी धन की खबर दो, जो सार्थक है, जिसकी खोज में तुम जाते हो।

याज्ञवल्क्य मुश्किल में पड़ गया होगा। अभी याज्ञवल्क्य सिर्फ विराग में जा रहा था। कात्यायिनी ने उसे वीतराग के डायमेंशन में, वीतराग के आयाम में उन्मुख किया। अभी उसे सार्थक था धन, इसीलिए तो बांटने को उत्सुक था। अभी कुछ न कुछ अर्थ था उसे धन में। छोड़ता था जरूर, लेकिन सार्थक था। अभी वह विराग की दिशा में मुड़ता था। लेकिन कात्यायिनी ने उसे एक नई दिशा में, एक नए आयाम का इशारा किया। उसने कहा कि छोड़कर जाते हो, देकर जाते हो, गौरवान्वित हो कि काफी दे जा रहे हो, तो फिर तुम छोड़कर जाते नहीं। धन तुम्हें सार्थक है; धन तुम्हें पकड़े ही हुए है!

कृष्ण कहते हैं, जो राग के पार हो जाता है–बियांड। वीतराग का अर्थ है, बियांड अटैचमेंट; डिटैचमेंट नहीं। वीतराग का अर्थ है, आसक्ति के पार; विरक्त नहीं। विरक्त विपरीत आसक्ति में होता है, पार नहीं होता। वह एक ध्रुव से दूसरे ध्रुव पर चला जाता है; दोनों ध्रुव के पार नहीं होता। वह एक द्वंद्व के छोर से द्वंद्व के दूसरे छोर पर सरक जाता है, लेकिन द्वंद्वातीत नहीं होता।

कृष्ण कहते हैं, जो वीतराग हो जाता है, वह मेरे शरीर को उपलब्ध हो जाता है। वीतराग, वीतभय, वीतक्रोध; जो इन सबके पार हो जाता है। वीतलोभ। वह तीसरा ही आयाम है। थर्ड डायमेंशन है।

तीन आयाम हैं जगत में। किसी चीज के प्रति राग, अर्थात उसे पास रखने की इच्छा। किसी चीज के प्रति विराग, अर्थात उसे पास न रखने की इच्छा। और किसी चीज के प्रति वीतराग, अर्थात वह पास हो या दूर, अर्थहीन; उससे भेद नहीं पड़ता।

ओशो

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