अतिपरिचयादवज्ञा संततगमनात् अनादरो भवति।
मलये भिल्ला पुरंध्रती चंदनतरुकाष्ठम् इंधनम् कुरुते॥
मलये भिल्ला पुरंध्रती चंदनतरुकाष्ठम् इंधनम् कुरुते॥
अत्यधिक जान पहचान से अपमान और किसी से लगातार अत्यधिक सम्पर्क से अनादर होता है। देखिए, मलायाचल के वन में रहने वाली भील स्त्री मलय के चन्दन को काष्ठ का ईन्धन बना कर जला देती है। इसी बात को कवि वृन्द ने इस प्रकार से कहा हैः
अति परिचै ते होत है, अरुचि अनादर भाय।
मलयागिरि की भीलनी चन्दन देति जराय॥
अति परिचै ते होत है, अरुचि अनादर भाय।
मलयागिरि की भीलनी चन्दन देति जराय॥
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