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Wednesday, May 21, 2014

धर्म का रास्ता.........

धर्म का रास्ता ऐसे ही है जैसे आकाश में पक्षी उड़ते हैं।
जो आदमी भीड़ के पीछे चलता है वह आदमी झूठे धर्म के रास्ते पर चलेगा। जो आदमी अकेला चलने की हिम्मत जुटाता है वह आदमी धर्म के रास्ते पर जा सकता है।
कुछ थोड़े से लोग कभी भीड़ से चूक जाते हैं और उस रास्ते पर चले जाते हैं जो धर्म का रास्ता है। और ध्यान रहे, भीड़ कभी धर्म के रास्ते पर नहीं जाती। धर्म के रास्ते पर अकेले लोग जाते हैं। क्योंकि धर्म के रास्ते पर कोई राजपथ नहीं है, जिस पर करोड़ों लोग इकट्ठे चल सकें। धर्म का रास्ता पगडंडी की तरह है, जिस पर अकेला आदमी चलता है। दो आदमी भी साथ नहीं चल सकते। और यह भी ध्यान रहे, धर्म का रास्ता कुछ रेडीमेड, बना- बनाया नहीं है, कि पहले से तैयार है, आप जाएंगे और चल पड़ेंगे। धर्म का रास्ता ऐसे ही है जैसे आकाश में पक्षी उड़ते हैं। कोई रास्ता नहीं है बना हुआ, पक्षी उड़ता है और रास्ता बनता है, जितना उड़ता है उतना रास्ता बनता है। और ऐसा भी नहीं है कि एक पक्षी उड़े तो रास्ता बन जाए, तो दूसरा उसके पीछे उड़ जाए। फिर रास्ता मिट जाता है। उड़ा पक्षी, आगे बढ़ गया, आकाश में कोई निशान नहीं बनते।

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