भक्ति दुवारा साँकरा, राई दशवें भाय।
मन को मैगल होय रहा, कैसे आवै जाय॥
मन को मैगल होय रहा, कैसे आवै जाय॥
मानव जाति को भक्ति के विषय में ज्ञान का उपदेश करते हुए कबीरदास जी कहते है कि भक्ति का द्वार बहुत संकरा है जिसमे भक्त जन प्रवेश करना चाहते है। वह इतना संकरा है कि राई के दाने के दशवे भाग के बरोबर है। अहंकारी मनुष्य का मन हाथी की तरह विशाल है अर्थात अहंकार से भरा है. वह अहंकार को त्यागे बगैर भक्ति के द्वार में कदापि प्रवेश नहीं कर सकता।
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