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Friday, April 18, 2014

जहां विचार नहीं, वहां मन नहीं!
सत्यको पाना है, तो मन को छोड़ दो। मन के न होते ही सत्य आविष्कृत हो जाता है, वैसे ही जैसे किसी ने द्वार खोल दिए हों और सूर्य का प्रकाश भीतर आ गया हो। सत्य के आगमन को मन दीवार की भांति रोके हुए है। मन की इस दीवार की ईट विचारों से बनी है। विचार, विचार और विचार- विचारों की यह श्रंखला ही मन है। रमण ने किसी से कहा था, 'विचारों को रोक दो और फिर मुझे बताओ कि मन कहां है?'
विचार जहां नहीं है, वहां मन नहीं है। ईट न हो, तो दीवार कैसे होगी?

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