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Thursday, April 24, 2014

भोजन करने सम्बन्धी जरुरी नियम (rules for eating)
पांच अंगो ( दो हाथ , २ पैर , मुख ) को अच्छी तरह से धो कर
ही भोजन करे !
प्रातः और सायं ही भोजनका विधान है !किउंकि पाचन
क्रिया की जठराग्नि सूर्योदय से 2 ० घंटे बादतक एवं सूर्यास्त से 2 :
3 0 घंटे पहले तक प्रवल रहती है
शैय्या पर , हाथ पर रख कर , टूटे फूटे वर्तनो मेंभोजन
नहीं करना चाहिए !
मल मूत्र का वेग होने पर,कलह के माहौल में,अधिक शोर में,पीपल,वट
वृक्ष के नीचे,भोजन नहीं करना चाहिए !
परोसे हुए भोजन की कभी निंदा नहीं करनी चाहिए !
भोजन बनने वाला स्नान करके ही शुद्ध मन से, मंत्र जप करते हुए
ही रसोई में भोजन बनाये और सबसे पहले ३ रोटिया अलग निकाल कर
( गाय , कुत्ता , और कौवे हेतु ) फिर अग्नि देव का भोग लगा कर
ही घर वालो को खिलाये !
भय , क्रोध, लोभ,रोग , दीन भाव,द्वेष भाव,के साथ
किया हुआ भोजन कभी पचता नहीं है !
भोजन के समय मौन रहे !
भोजन को बहुत चबा चबा कर खाए !
रात्री में भरपेट न खाए [ भूख से थोडा कम ]
सबसे पहले रस दार , बीचमें गरिस्थ , अंत में द्राव्य पदार्थ ग्रहण करे!
थोडा खाने वाले को --आरोग्य , आयु , बल , सुख, सुन्दर संतान ,
और सौंदर्य प्राप्त होता है !
कुत्ते का छुवा , रजस्वला स्त्री का परोसा, श्राध
का निकाला , बासी , मुह से फूक मरकर ठंडा किया , बाल
गिरा हुवा भोजन , अनादर युक्त , अवहेलना पूर्ण परोसा गया भोजन
कभी न करे !
कंजूस का, राजा का,वेश्या के हाथ का,शराब बेचने वाले
का दिया भोजन कभी नहीं करना चाहिये ......

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